श्रीमद्भगवद्गीता में त्रिगुणात्मक और त्रिगुणातीत होने की सार्वभौमिक शिक्षा….
गीतोपदेश को सांप्रदायिक सीमाओं में बांधकर सही तरह से नहीं समझा जा सकता है! अब इस ग्रंथ की जितनी भी व्याख्याएँ हुई हैं, उनमें से अधिकांश सांप्रदायिक या मजहबी या वैचारिक पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर लिखी गई हैं! अद्वैतवादी, विशिष्टाद्वैतवादी,द्वैतवादी, त्रैतवादी, अहिंसावादी,अध्यात्मवादी, मानसिक वृत्तियों की संघर्षवादी, प्रतीकवादी,योगसाधनावादी, ज्ञानवादी, संन्यासवादी [...]