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बंजरीली कहांँ रही ये मिट्टी’

बंजरीली कहांँ रही ये मिट्टी’

‘औराही-हिंगना’ गाँव की मिट्टी से,
ये सौंधी-सौंधी महक आ रही है।
अब बंजरीली कहांँ रही ये मिट्टी?

हिंदी साहित्य के इस शिखर पर ,
रचनाओं के अनगिनत पेड़ लगे हैं।
अब बंजरीली कहांँ रही ये मिट्टी?

देखो! मेरी क़लम की तेज निकौनी से,
ये प्रकृति भी ऊर्जावान हो रही है।
अब बंजरीली कहांँ रही ये मिट्टी?

इस मिट्टी की खुश्बू को दर्ज करा दिया है,
मैंने सदा के लिए ‘वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में।
अब बंजरीली कहांँ रही ये मिट्टी?

चाहे मैं न रहूँ जग में इस मिट्टी की गंध,
आती रहेगी हिंदी साहित्य के विश्व पटल पर।
अब बंजरीली कहांँ रही ये मिट्टी?

मैंने इसे अपनी क़लम से सींचा है।
कल्पना के ज़रिए रचनाओं में उकेरा है।
अब बंजरीली कहाँ रही ये मिट्टी?

‘मैले-आँचल’ की छाँव को बाँध दिया है।
उसकी छाँव में सबको समेट लिया है।
अब बंजरीली कहांँ रही ये मिट्टी?

सच्ची लगन व मेहनत के बल से मैंने,
इसे ‘धूलधूसरित’ होने से बचाया है।
अब बंजरिली कहांँ रही ये मिट्टी?

अपनी कलम के माध्यम से ‘रेणु गाँव’ की,
खुश्बू को जन-जन तक पहुँचाया है।
अब बंजरिली कहांँ रही ये मिट्टी?

संदीप कुमार विश्वास
रेणु गाँव, औराही-हिंगना
फारबिसगंज,अररिया-बिहार

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