ऋतुपति
ऋतुपति
अनुरक्त हुए ऋतुपति को मैं,
पीने को हाला देती हूँ।
कंचनवर्णी इस यौवन को,
मधुरस का प्याला देती हूँ।।
मधुरिम अधरों पर रसासिक्त,
आँखें सुंदर भी हैं नीली।
यौवन मद में मखमली बदन,
स्वर्णिम आभा नथ चमकीली,
प्रेयसी प्राणदा प्रियतम को,
प्यारी मधुशाला देती हूँ।
कंचनवर्णी इस यौवन को,
मधुरस का प्याला देती हूँ।।
नित मदिर -गीत गाता यौवन,
बौराती पुलकित तरुणाई।
मैं बँधीं प्रीति की डोरी से,
हूँ बिना पिया के अकुलाई।।।
सिंदूरी माथे को खुश हो,
निज मन मतवाला देती हूँ।
कंचनवर्णी इस यौवन को,
मधुरस का प्याला देती हूँ।।
यौवन का झीना घूँघट पट,
रेशम की अँगिया शरमाती।
अभिसार वल्लरी नित पुष्पित,
है चन्द्र प्रभा सी मुस्काती।।
प्रिय प्रांजल मूरत प्रांजल को
मैं प्रेमिल प्याला देती हूँ।
कंचनवर्णी इस यौवन को,
मधुरस का प्याला देती हूँ।।
मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’