प्रदूषण
प्रदूषण
भू प्रदुषण देख घटा का गुस्सा फूट रहा था।
फिर धीरे धीरे छोटा बादल
नभ से टूट रहा था।
कुछ व्योम में घूम रहे थे।
कुछ धरती को चूम रहे थे।
कुछ अटके थे चंद श्वास पर
कुछ तुले थे सर्वनाश पर
कुछ करते आंखों को लाल
कुछ बनते जीवो का काल
कुछ ने खो दिया था आपा
कुछ कहते पानी को पापा
अब फट फट जाता बादल भर जो सब्र का घूट रहा था।
भू प्रदुषण देख घटा का …..
अब आज नही वह जो कल था।
बस धरती पर जल ही जल था।
लोग भूख से चिल्लाते थे।
डूब कुछ जल में जाते थे।
घर खत्म व फसल खत्म है।
आँखों आगे तम ही तम है।
था गीला आटा कंगाली में।
नही बचा था कुछ थाली में।
वट वृक्ष का मानो जड़ से साथ छूट रहा था।
भू प्रदूषण देख घटा का…….
ये सब करनी का फल था।
जो धरती पर जल ही जल था।
गिरि गिराकर मार्ग बनाया।
सरिता में अपशिष्ट बहाया।
जब धावा वृक्षों पर बोला था।
तब वायु में विष घोला था।
शोणित में प्रकृति के नहाकर
अब रोता खुद में आग लगाकर।
अपने दोनों हाथ फैलाकर मानव प्रकृति लूट रहा था।
भू प्रदूषण देख घटा का…….
जन जग उठो आसक्ति भरो।
अपने कर्मो से अभव्यक्ति करो।
सम्मेलन से कुछ ना होगा।
वादों का औचित्य हरण होगा।
घनघोर तिमिर छा जाएगा।
मानव कुछ ना कर पायेगा।
अगर यूही प्रकृति लूटेगा।
भाग्य मनुज का फूटेगा।
महज भैतिक सुख के लिए मनुज क्यो आफत कूट रहा था।
भू प्रदूषण देख घटा का…….
देशबंधु त्यागी
गाजियाबाद