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जहां से चले थे वहीं पर खड़े हैं,यकीनन कैसा सफ़र है?

जहां से चले थे वहीं पर खड़े हैं,यकीनन कैसा सफ़र है?

भुजेंगी मछलियाँ कब ,कहां और किस तवे पर?
ये समंदर में गोते लगाते सभी केकडे जानते हैं।
पनघट के पानी में कैसा और कितना जहर है ?
ये मिट्टी के वर्तन, सुराही और सारे घड़े जानते हैं।
बुलंदी,बुनावट ,सजावट में किसका हुनर है?
फफोले,फटी ऐडियाॅ,हाॅफते फेफड़े जानते हैं।
शहर में हर तरफ अंधेरों का कितना गहरा कहर हैं?
कतरे-कतरे उजालो की खातिर लडें जानते हैं।
कुर्बानियों की कितनी बेमिसाल खूबसूरत डगर है ?
अमन,ईमान,उसूलों की खातिर हरपल अडे जानते हैं।
सिसकियों, हिचकियों पर डर का कितना असर है?
मुहब्बत की खातिर जमीं में दफ़न और गड़े जानते हैं ।
जहां से चले थे वहीं पर खड़े हैं,यकीनन कैसा सफ़र है?
राहों के कंकर पत्थर, शजर के हर धड़े जानते हैं ।
नगर की रवायत, नज़ाकत, पर किसकी नजर है ?
नफ़रती आग में ज़ख्म खाएं हुए छोटे-बड़े जानते ।
ज़मींदोज़ किसके-किसके महल, कितने खंडहर है ?
इंसानियत की मशालें जलाएं खुद खड़े जानते हैं।

स्वरचित
मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता
लेखक/ साहित्यकार/उप सम्पादक कर्मश्री मासिक पत्रिका

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