२४वें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी जी भगवान आधार पीठिका
२४वें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी जी भगवान
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भारत की धार्मिक और आध्यात्मिक परंपरा में जैन धर्म का विशेष स्थान है। प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव जी से लेकर जैन धर्म के २४वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी जी ने न केवल धार्मिक जीवन का आदर्श प्रस्तुत किया, बल्कि उन्होंने सत्य, अहिंसा और आत्मसंयम के माध्यम से आत्मशुद्धि और मोक्ष का मार्ग भी दिखाया। उनका जीवन और शिक्षाएँ आज भी मानवता के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
जीवन परिचय
भगवान महावीर का जन्म ईसा पूर्व ५९९ में बिहार राज्य के वैशाली के निकट कुंडलपुर नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता राजा सिद्धार्थ और माता त्रिशला थे। महावीर जी का बाल्यकाल राजसी वैभव में बीता, लेकिन युवावस्था में ही उन्होंने संसार की क्षणभंगुरता को समझते हुए ३० वर्ष की आयु में गृह त्याग कर दिया और दीर्घकालीन तपस्या एवं साधना के बाद केवल्य ज्ञान प्राप्त किया।
महावीर स्वामी जी की प्रमुख शिक्षाएँ:
१. अहिंसा (Non-Violence)
महावीर स्वामी जी की सबसे प्रमुख शिक्षा अहिंसा है। उनके अनुसार, “अहिंसा परमो धर्मः” — अहिंसा ही परम धर्म है। उन्होंने सिखाया कि किसी भी जीव को मन, वचन और कर्म से कष्ट न पहुँचाना ही सच्चा धर्म है। उन्होंने अहिंसा को केवल शारीरिक हिंसा तक सीमित नहीं रखा, बल्कि विचार, भावना और व्यवहार तक विस्तारित किया। मनसा, वाचा, कर्मणा इस तथ्य की ओर अंगुलिनिर्देश करता है।
२. सत्य (Truth)
महावीर जी ने सत्य बोलने और सत्य आचरण करने पर बल दिया। उनके अनुसार, जो व्यक्ति सत्य के मार्ग पर चलता है, वही आत्मा की शुद्धि की ओर अग्रसर होता है। आज हमें सत्यता की कसौटी पर खरे उतरने का प्रयास करना चाहिए।
३. अस्तेय (Non-stealing)
किसी वस्तु को बिना स्वीकृति लेना चोरी है। महावीर जी ने सिखाया कि केवल भौतिक वस्तुओं की चोरी ही नहीं, बल्कि समय, विचार और श्रम की चोरी भी पाप है। साहित्य के क्षेत्र में भी चोरी का कार्य वर्तमान में सामाजिक समस्या का स्वरूप लेता जा रहा है जो चिन्ता का विषय है।
४. ब्रह्मचर्य (Celibacy)
महावीर जी ने इंद्रिय संयम और ब्रह्मचर्य को आत्मशुद्धि का आवश्यक साधन माना। यह संयम न केवल शारीरिक है, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी है।
५. अपरिग्रह (Non-possession)
महावीर जी ने अत्यधिक संग्रह और मोह को आत्मा की शुद्धि में बाधा बताया। उन्होंने सिखाया कि जितना आवश्यक हो, उतना ही ग्रहण करें और शेष त्याग करें।
६. अनेकांतवाद (Multiplicity of views)
महावीर स्वामी जी ने सिखाया कि सत्य बहुपक्षीय होता है। किसी भी विषय या विचार को एक ही दृष्टिकोण से नहीं देखा जा सकता। उन्होंने ‘स्याद्वाद’ का सिद्धांत दिया, जिससे सहिष्णुता, विचारों की विविधता और संवाद की भावना का विकास होता है।
महावीर स्वामी जी की शिक्षाएँ आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस काल में थीं। जब समाज हिंसा, असहिष्णुता और भौतिकता के अंधान्ध में डूबता जा रहा है, तब महावीर जी के सिद्धांत हमें संतुलन, शांति और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग दिखाते हैं। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हमें एक समर्पित, संयमित और करुणामयी जीवन जीने का प्रयास अवश्य करना चाहिए।
डॉ ओम ऋषि भारद्वाज
कवि एवं साहित्यकार उत्तर प्रदेश