तरकीब सीखा दे..
तरकीब सीखा दे..
ना पीछे देखने का वक्त हो, ना आगे बढ़ने की आरजू
यह दुनिया जैसे चलती है ,रहना बीच इनके सिखा दे
किसी के होने ना होने का एहसास ना हो
बाकी जो तू चाहे ,अपने हिसाब से चला दे
लोगों से पहले सोचना खुद के लिए शुरू करूं
मुझे कुछ ऐसा ,पत्थर दिल बना दे
अपनों की कही बात जो दिल में लगे कभी
ऐसी बातों को भूलने की, तरकीब सिखा दे
टूट-टूट कर भी न कतरा हो जाऊं कभी
सम्हलने के लिए बस ,इतना सब्र दिला दें
मय से क्या नशा होगा नही समझ हमें
पर मदहोशी से जग में, हमें जीना सिखा दे
चाह कर भी किसी का मुझ पर बस न चले
ऐ जिन्दगी तु मुझे बस ,अपनी तरह बना ले
सूर्यकांत चौहान,
भंडारा – महाराष्ट्र