ऐसी तुम मशाल बनो
ऐसी तुम मशाल बनो
दुश्मनों का काल बनो, दोस्तों की ढ़ाल बनो ।
दूर हों अंधेरे जग के, ऐसी तुम मशाल बनो ।।
आंधियां उठें जहां, कदम नहीं रुकें वहां ।
मुड़के देखना नहीं है, तुम पहुंच गए कहां ।।
यूँ नदी की चाल बनो, स्वर के साथ ताल बनो ।
दूर हों अंधेरे जग के, ऐसी तुम मशाल बनो ।।
आसमां को छू लिया है, सागरों को पार कर ।
अपना सिर झुका दिया है, पर्वतों ने हार कर ।।
हिंद का यूँ भाल बनो, देशभक्त लाल बनो ।
दूर हों अंधेरे जग के, ऐसी तुम मशाल बनो ।।
चेतना की तेज लहर, उठ रही समाज में ।
गूंजता गगन रहेगा, तेरी एक आवाज में ।।
फूलों की न माल बनो, पूजा का न थाल बनो ।
दूर हों अंधेरे जग के, ऐसी तुम मशाल बनो ।।
कर्ज़ मातृभूमि का है, इस तरह चुकाओ तुम ।
दुश्मनों के बीच एक, भूचाल बनके छाओ तुम ।।
शत्रु पर सवाल बनो, उसके लिए काल बनो ।
दूर हों अंधेरे जग के, ऐसी तुम मशाल बनो ।।
भावनाओं के भंवर में, जोश तेरा कम न हो ।
बंधनों की याद करके, आंख तेरी नम न हो ।।
फिर से महाकाल बनो, शिवा, छत्रसाल बनो ।
दूर हों अंधेरे जग के, ऐसी तुम मशाल बनो ।।
रौद्र रूप देख शत्रु, भय से थरथरा रहा ।
कामयाबियों पे ख़ुदा, ख़ुद ही मुस्कुरा रहा ।।
ख़ुद में एक मिसाल बनो, यूं ही सालों साल बनो ।
दूर हों अंधेरे जग के, ऐसी तुम मशाल बनो ।।
अमर सिंह वर्मा, जबलपुर.