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ग़ज़ल

ग़ज़ल

दुख अपने, बेचने गया, एक दिन बाजार में ।
आया ना कोई, बैठा रहा, इंतज़ार में ।।
बच्चों के साथ खेला तो, दुख सारे मिट गये ।
आया है मजा जीतने का, ख़ुद की हार में ।।
खुशियां मिलीं जो उस दिन, अनमोल बन गईं ।
जिनकी नहीं है कीमत, पूरे संसार में ।।
बचपन में तो मिलता है, भरपूर लाड़-प्यार ।
बाद उसके उम्र बीतती, डांट और फटकार में ।।
हर दिन ही प्यार-आदर, और साथ अपनापन ।
लोगों से मिल रहा है मुझे, पुरस्कार में ।।
हर इक निराश मन की, ताकत है ये दवा ।
मुस्कान साथ रखिए, अपने व्यवहार में ।।
हर पल, नए जीवन का, प्रारंभ है ‘अमर’।
जो साथ जुड़ गया है मेरे, शिष्टाचार में ।।

अमर सिंह वर्मा, जबलपुर

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