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(व्यंग्य) हाय! जुलाई

(व्यंग्य) हाय! जुलाई

जुलाई, यह कैसी सौगात लाई ।
विद्यार्थी, माता-पिता की, अब शामत आई ।।

लाद दिया बोझा, कापी-किताबों का ।
हुआ चकनाचूर, महल उनके ख़्वाबों का ।।
स्कूल खुलने का, तुमसे गहरा नाता है ।
गरीबी में आटा, गीला हुआ जाता है ।।
करूँ कैसे स्वागत, ना पड़ता सुझाई ।
जुलाई, यह कैसी सौगात लाई ।।

कापी-किताबें, बरसाती-छाते, अगवानी करने हम, लिए दौड़े आते ।।
डर है अगर आप, नाराज हो जाएंगी ।
बच्चे के दुनिया, अंधेरी हो जाएगी ।।
फिर किसके दर पर, होगी सुनवाई ।
जुलाई, यह कैसी सौगात लाई ।।

बस्ते का बोझा तो, बच्चा उठाता ।
मैं घर का बोझा, अकेले उठाता ।।
चले बैलगाड़ी सी, अब घर की गाड़ी ।
लूं बच्चे की यूनिफार्म, या पत्नि की साड़ी ।।
रिश्ते में नानी है, तेरी, महंगाई ।
जुलाई, यह कैसी सौगात लाई ।।

अमर सिंह वर्मा, जबलपुर

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