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हिचकियां

हाय रे यह हिचकियां ,
बग़ावत पर उतारू हैं।
यादें हैं तुम्हारी या हैं ,
दिल की कोई बीमारी।

सांसों को रोक देतीं,
जब कभी भी आतीं।
हृदय के हर झरोखों से ,
हो कर गुज़र जातीं।

कोई याद किसी को करता,
या दिल से कोई बुलाता।
काफी दिनों तक कोई ,
जब नज़र हि नहीं आता।

ऐसे में ये हैं आतीं ,
हमें याद हैं दिलातीं।
कहीं दोस्त कहीं दुश्मन ,
जब याद हैं कभी करता।

ऐ हिचकियां ही तो है ,
आकर हमें बतातीं।
फिर भाव शून्य हो कर,,
सोचते हैं आखिर कौन।

हमें सता रहा है,,
मिलने की खातिर हम से।
हिचकियां पेठा रहा है,
हाय रे यह हिचकियां।

कमल नारायण सिंह

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