सिख धर्म के नौवें गुरु _ श्री तेग बहादुर !
सिख धर्म के नौवें गुरु _ श्री तेग बहादुर !
गुरु तेग बहादुर जी का जीवन मानवता, धर्म और सत्य के प्रति समर्पण का प्रतीक है। उनकी कुर्बानी ने यह सिखाया कि अन्याय और अधर्म के खिलाफ खड़ा होना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। उनके आदर्श और बलिदान सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे। उनका जन्म 1 अप्रैल 1621 को पंजाब के अमृतसर में हुआ। वे गुरु हरगोबिंद जी के सबसे छोटे पुत्र थे। उनका बचपन का नाम त्याग मल था, लेकिन उनके अद्भुत त्याग और बलिदान के कारण उन्हें गुरु तेग बहादुर नाम दिया गया।
गुरु तेग बहादुर जी की शिक्षा और व्यक्तित्व का निर्माण उनके पिता गुरु हरगोबिंद जी की देखरेख में हुआ। उन्होंने न केवल धार्मिक शिक्षा प्राप्त की, बल्कि शस्त्र विद्या और घुड़सवारी में भी महारत हासिल की। वे हमेशा सिख धर्म के मूल सिद्धांतों जैसे सत्य, धर्म और सेवा पर चलने के लिए प्रेरित करते रहे।
गुरु तेग बहादुर जी का जीवन त्याग, बलिदान और मानवता की रक्षा के लिए समर्पित था। उन्होंने मुगल शासक औरंगज़ेब की धर्मांतरण नीतियों का विरोध किया और कश्मीरी पंडितों को इस्लाम में परिवर्तित होने से बचाने के लिए दिल्ली में अपना बलिदान दिया। उनका यह बलिदान केवल सिख धर्म के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया।
24 नवंबर 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक में गुरु तेग बहादुर जी को शहीद कर दिया गया। उनकी इस महान कुर्बानी के कारण उन्हें “हिंद की चादर” कहा जाता है। उनकी शहादत ने सिख धर्म के अनुयायियों को अन्याय के खिलाफ लड़ने और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
गुरु तेग बहादुर जी द्वारा रचित बाणी “गुरु ग्रंथ साहिब” में शामिल है। उनकी शिक्षाएं आज भी प्रेम, सहिष्णुता और धार्मिक स्वतंत्रता की महत्ता को रेखांकित करती हैं। उनके बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा, और उनका जीवन सिख धर्म एवं भारतीय संस्कृति में एक प्रेरणास्त्रोत बना रहेगा।
डॉ. ओम ऋषि भारद्वाज, कवि एवं साहित्यकार एटा (उ. प्र.)