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मनभावन धरती की चूनर धानी लगती है

मनभावन धरती की चूनर धानी लगती है

मीठी-मीठी कोयल की कूक सुहानी लगती है
अति मनभावन धरती की चूनर धानी लगती है

हरे- भरे वृक्ष बाग- बगीचों की शोभा होते हैं
जिनकी छाया के नीचे बड़े चैन से सोते हैं
फूलों से लदी डाली बड़ी लुभावनी लगती है
अति मनभावन धरती की चूनर धानी लगती है

कल- कल करती बहती नदियों की शीतल जल धारा
हिम चादर ओढ़े पर्वत शिखरों का सुखद नजारा
सन- सन बहती ठण्डी- ठण्डी हवा मस्तानी लगती है
अति मनभावन धरती की चूनर धानी लगती है

झर झर कर पर्वत से गिरते झरने प्यारे लगते हैं
लहलहाते खेतों के सुन्दर नजारे लगते हैं
सतरंगी अम्बर की यह धरा दिवानी लगती है
अति मनभावन धरती की चूनर धानी लगती है

हरी घास के मैदान की सुन्दरता निराली है
रंग बिरंगे फूलों से महक रही हर डाली है
धरा पर ऋतुराज की सुन्दर अगवानी लगती है
अति मनभावन धरती की चूनर धानी लगती है

पेड़- पौधे, लताओं से धरती की सुन्दरता है
प्राकृतिक संसाधनों से जीवन को सुख मिलता है
प्रकृति के बिना अधूरी यह जिन्दगानी लगती है
अति मनभावन धरती की चूनर धानी लगती है

राम जी तिवारी “राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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