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अधूरी अभिज्ञा

अधूरी अभिज्ञा

नियमत:
प्रातः टहलन
के दरम्यान
देखा-

रास्ते में
एक दिन
बच्चों की
लम्बी कतारें

पीठ पर ढोते
वजनदार बैग
कुहरते-हांफते
रेंगते-लंगराते

ज्ञानार्जन की
नव पद्धति देख
तरस आयी
मुझको बेदर्द

दुस्साहस मन
से पूछा-
मैंने एक
प्रश्न?

उत्तर बिल्कुल
ही अनर्गल
बालमन के
विलोम !

स्मरण आया-
अभिमन्यु वाली
ह्रदय विदारक
विस्मयकारी घटना!

शेखर कुमार श्रीवास्तव
दरभंगा-बिहार

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