हे राम तुम्हें आना होगा
हे राम तुम्हें आना होगा
कलियुग में राह दिखाने को
दशरथ संताप मिटाने को
मर्यादा, वचन निभाने को
सीता की लाज बचाने को
हे राम तुम्हें आना होगा!
हे राम तुम्हें आना होगा!
मंथरा है पनपी घर-घर में
कैकई ने घर- घर वास किया
ये रक्तबीज से हैं रावण
बढ़ते हैं ज्यों ज्यों नाश किया
जन जन की त्रास मिटाने को!
निशिचर का वास हटाने को!
केवट की नाव तराने को!
इस जगत में भेद मिटाने को!
हे राम तुम्हें आना होगा!
हे राम तुम्हें आना होगा!
माया में डूबे मायावी
मदिरा में डुबे हैं भोगी
दिग्भ्रमित खेवैया नौका के
ये सुबह न जाने कब होगी
पुरुषोत्तम बिगुल बजाने को
रण भेरी गूंज सुनाने को
श्री राम राज दर्शाने को
घर घर में राम कहाने को
हे राम तुम्हें आना होगा!
हे राम तुम्हें आना होगा!
क्या झूठ क्या सच क्या पता नहीं
लिखा क्या सच था पता नहीं
अपने ही झूठे हस्ताक्षर
कागज के सच का पता नहीं
सच- झूठ का फर्क बताने को!
भटकों को दिशा दिखाने को!
कथनी पर अमल जताने को!
बेरों का स्वाद बताने को!
हे राम तुम्हें आना होगा!
हे राम तुम्हें आना होगा!
रावण ने बांचा सत्य वचन
मानव वो नहीं अवतारी हैं
क्यों खुद को ही बस मैं तारूं
जब बलिहारी कुलतारी हैं
नव चेतन मन लहराने को!
नव किरण पुंज दमकाने को!
नव अन्तर्मन कुम्भलाने को!
नव सद् विचार बरसाने को!
हे राम तुम्हें आना होगा!
हे राम तुम्हें आना होगा!
जगदीश चन्द्र जोशी बी 39 गंगाधाम गंगानगर मेरठ