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बेटियां

बेटियां

खुद जलकर भी जग को रोशन कर जाती हैं बेटियां,
संसार में कैसे जिए, कभी गर्भ में, सती प्रथा, तो कभी दहेज की आग में जल जाती हैं बेटियां ।

कुल के दीपक होते हैं बेटे, उस दीपक में रोशनी बनकर उजाला कर जाती है बेटियां।

परिवार को आस होती है बेटों से पर उसे पूरा कर जाती है बेटियां ।

एक कुल का मन होते हैं बेटे तो, दो कुलों का स्वाभिमान होती हैं बेटियां ।

जिस घर को चला नहीं पाते बेटे, उस घर को स्वर्ग स सजाती है बेटियां ।

अपने होकर पराए हो जाते हैं बेटे, मगर पराई होकर अपनों का एहसास कराती है बेटियां ।

जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़कर नाम कमा जाती है बेटियां।

दुखों को आधा और खुशियों को चौगुना कर जाती है बेटियां।

संकल्प ले लेते हैं बेटे, पर उसे पूरा कर जाती है बेटियां ।

उम्मीद होती है बेटों से, पर अखबारों में छा जाती हैं बेटियां ।

स्कूल कॉलेज में दाखिला कराते हैं बेटे, और परीक्षाओं में अब्बल आती है बेटियां ।

इतिहास गवाह है यदि वह ठान लें तो, असंभव को भी संभव कर जाती है बेटियां ।

जब बात होती है राष्ट्र उत्थान की,
तो कल्पना चावला भी बन जाती है बेटियां।

हास्य कवि राजकुमार अहिरवार प्रेरणा विदिशा

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