हिन्दी की दुर्दशा ( गीत )
हिन्दी की दुर्दशा
( गीत )
आठ आठ आँसू रोये भव्य भारती !
हिन्दी आज हिन्द से हिसाब माँगती !!
संसकृत सिसकती सिमटी यहां !
देववाणी उपमा दे बेचा है कहाँ ?
वोलत विदिशी वोली बाचाली वहां!
संसद सदन सारा गौरव जहां !!
हुआ ह्रास हिन्दी का निदान चाहती !
हिन्दी आज हिन्द से हिसाब माँगती !! आठ आठ०००
बिकृत साहित्य संस्कृति धंधली !
वाणी जाल उलझ सुभावना जली !!
अन्तर दूषित वाह्य दिखै उजली !
मुखौटे लगे हैं ,सूरतें हैं नकली !!
मृतप्राय मातृभाषा मुक्ति मांगती !
हिन्दी आज ००००००
घोटालों से बन्दे मातरम् रोगया !
भूगोल में भारतीय भाव खो गया !!
सद्ज्ञान सागर सतह सो गया !
साधना स्वदेशी का सफाया होगया !!
निज नव निर्माण माँटी चाहती !
हिन्दी आज००००
विदेशी गुलाम हुए भारतीय लोग !
नेताओं को भृष्टचारी दौलतिया रोग !
नपुषक ,सत्तासीन भोगते जो भोग !
सीमा पर रिपु के दबाव का कुयोग !!
देश भक्त सोगये क्या दुत्कारती !
हिन्दी आज०००
आँग्लभाषा जिनका जीवन प्राण है !
बाक्पटु राष्ट्रवादी व्याख्यान हैं !!
जिनके भरोषे युग निर्माण है !
गिरबी रखा हो जिन स्वाभिमान है !
मरमिट सभीत मातु रूह कांपती !
हिन्दी आज ००००
आठ आठ ०००००
( जय हिन्द जय भारत )
माॅंगी लाल मरमिट
श्योपुर मध्यप्रदेश