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लघु कथा- “हरियाली और हम”

लघु कथा- “हरियाली और हम”

“नम्रता! चलो आज सुदूर पठारों पर आच्छादित वनस्पतियों की ओर।शहर के शोर और तनावपूर्ण दिनचर्या से मन ऊब गया है।दो दिनों की छुट्टी मिली है।शहर में रहने और जीने की विवशता से हम कहां उबर पाते हैं।”
सुधीर के सुझाव से नम्रता सहमत होते हुए बोली,” चलो चलते हैं। शहर से दूर पठारी पर हरे भरे पेड़ों के पास पहुंचते ही नम्रता प्रकृति के बहुरंगी रूप को देखकर बोली,”काश! हम इन तितलियों, बगुलों, बंदरों,हाथियों,फूलों और चहचहाते पक्षियों से यह सीख पाते कि अपने स्वभाव,रुचि व प्रवृत्ति के अनुसार जिस जगह रहें प्रेम से रहें। जीयें और जीने दें।”
नम्रता कीआदर्शवादी बातें सुनते ही सुधीर मुस्कुराते हुए बोला,”तुम कैसी हास्यास्पद बातें करती हो! ये तो प्रकृति से जुड़े हुए जीव हैं। हम लोग तो अब बहुत सभ्य हो गए हैं।ये जीव जंतु विभिन्न प्रजाति के होते हुए भी एक दूसरे को नुकसान नहीं पहुंचते। लेकिन हमलोगों में कुछ लोग दूसरों को कष्ट देने में ही खुशी महसूस करते हैं। इसीलिए हम एक दूसरे से डरे और सहमे रहते हैं।आज हम अकेले तनावपूर्ण जीवन जी रहे हैं क्योंकि हम बहुत सभ्य हैं।”

— बिनोद कुमार पाण्डेय–
ग्रेटर नोएडा

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