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जल संकट : एक गंभीर चुनौती

जल संकट : एक गंभीर चुनौती

पानी की कमी सतत विकास के लिए प्रमुख चुनौतियों में से एक है ,क्योंकि पानी न केवल मानवता के लिए , बल्कि कृषि उत्पादन , खाद्य सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है और हमारे पारिस्थितिक तंत्र की जीवन धारा है। फिर भी , जनसंख्या वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण हमारे मीठे पानी के संसाधन चिंताजनक दर से कम होते जा रहे हैं। घरेलू एवं वैश्विक स्तर पर मीठे एवं पीने योग्य जल की मांग और पूर्ति में निरंतर बढ़ता अंतराल मानव – जीव – जंतुओं – वनस्पतियों के जीवित रहने तथा विकसित होने के समक्ष संकट उत्पन्न कर रहा है। कृषि और औद्योगिक विकास को गति प्रदान करने के लिए भूमिगत जलस्रोतों के अंधाधुंध विदोहन ने जल स्तर को इस सीमा तक नीचे धकेल दिया है कि अनेक क्षेत्रों में इसकी निकासी भी संभव नहीं है। नदियों , प्राकृतिक झरनों और जलाशयों में लगातार गिरते अनुपचारित दूषित जल जो इन क्षेत्रों के नालों तथा औद्योगिक इकाइयों से आता है — ने इन जल श्रोतों के पानी को छूने लायक भी नहीं छोड़ा है। पीने की बात तो बहुत दूर है। असामयिक और अनिमियत वर्षा से प्रति वर्ष नदियों में आने वाली विनाशकारी बाढ़ का पानी बह कर समुद्रों ने चला जाता है। आर्थिक शब्दावली में पानी सर्वोपकारी वस्तु ( मेरिट गुड ) है। इसलिए यह मुफ्तखोरी की समस्या से ग्रसित है। व्यक्तिगत स्तर पर कोई भी जल – उपभोक्ता जल के सामूहिक श्रोतों को सुरक्षित रखने का उत्तरदायित्व अपने ऊपर नही समझता , वरन इस कार्य के लिए सरकार ( राज्य ) को ही उत्तरदायी मानता है।
बढ़ते शहरीकरण से पानी की मांग बढ़ रही है और अधिक अपशिष्ट जल उत्पन्न हो रहा है।
1.4 अरब आबादी के साथ भारत वर्तमान में ही सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश तो है ही , और 2050 तक 1.7 अरब की अनुमानित वृद्धि के साथ , भारत खुद को उस आबादी के विशाल समूह को सुरक्षित , स्वच्छ पानी प्रदान करने में असमर्थ होगा। केंद्रीय जल आयोग द्वारा 2019 में किए गए एक पुनर्मूल्यांकन (1985-2015). के अनुसार भारत की नदी घाटियों का औसत वार्षिक जल संसाधन 1999 बिलियन क्यूबिक मीटर आकलित किया गया है। जल की उपलब्धता को देखते हुए , 1950 में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल उपलब्धता 3 से 4 हजार क्यूबिक मीटर तथा 2011 में 1545 क्यूबिक मीटर आँकी गई थी ,जो 2021 में घटकर 1486 क्यूबिक मीटर रह गई है तथा इसके 2031 तक 1367 क्यूबिक मीटर रह जाने का अनुमान है। जो वास्तव में चिंता का कारण बनता जा रहा है। भविष्य में इसके दुरुपयोग पर लगाम लगाने की आवश्यकता है।

आशीष अम्बर
जिला – दरभंगा
बिहार

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