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पर्यावरण गीत

पर्यावरण गीत

आओ कंधे से कंधा और कदम से कदम मिलाएं हम।
पर्यावरण सुरक्षित रखने, बीड़ा आज उठाएं हम।

अंधाधुध खनन पृथ्वी का, करने से परहेज रखें।
जल जंगल अपनी जमीन को, मिलकर सभी सहेज रखे।
पेड़ लगाकर इस धरती पर, हरित क्रांति अब लाएं हम।

पशु पक्षी वन जीव जंतु हैं आओ इन्हें बचाओ जी।
आग लगाकर के जंगल में इनको नहीं सताओ जी।
यही बात समझें पहले फिर, औरों को समझाएं हम।

गंदे नाले धुआं और केमिकल, अम्ल युक्त गंदा पानी।
ऊंची बिल्डिंग फैक्ट्रीज पर, रखना हरदम निगरानी।
इस गंदे पानी को इन, नदियों से दूर गिराएं हम।

जंगल पेड़ और चट्टाने, यही प्रकृति कहलाती है।
ईधन फल ओषधि आदि ये ही तो हमें दिलाती है।
परश राम बनकर के फरसा,इन पर नही चलाएं हम।

ग्लोबल वार्मिग बढ़ता पारा, मार रहा नित जंप है।
आंधी तूफा बाढ़ कहीं सूखा अकाल भूकम्प है।
इन सबसे बचना है तो फिर, पर्यावरण बचाएं हम।

ज़हरीले उर्वरक खाद, केमिकल को ठुकराना है।
ज्यादा से ज्यादा जैविक, खेती को ही अपनाना है।
आओ इस धरती को नो, पॉलिथिन जोन बनाएं हम।

जन्म दिया जिस मां ने तुम को जिसने तुमको पाला है
उस धरती मां का आंचल , तुमने छलनी कर डाला है।
इस पावन वसुधा मिलकर ,आओ कर्ज चुकाएं हम।

पर्यावरण रहा ज़िंदा तो, ज़िंदा हम रह पाएंगे।
बुरा न मानो वर्ना हम सब ,बिना मौत मर जायेंगे।
कहें “इन्द्रसिंह” प्रकृति से हमको, नाहक क्यों टकराये है।

इंद्रसिंह राजपूत
शिक्षक
पनागर – जबलपुर मध्यप्रदेश

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