सावन के (बरखा) गीत
सावन के (बरखा) गीत सर्व तपै जो रोहिणी, सर्व तपै जो मूर तपै जेठ की प्रतिपदा, उपजै सातो तूर, शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय, तो यों भाखै भड्डरी, बरखा बरसै आय। उठे काँकड़ा, फूली कास, अब नाहिन बरखा की आस, झबर झबर ना चली पुरवाई, क्या जानै कब बरखा [...]