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चिंतन करत मन भाग्य का

चिंतन करत मन भाग्य का

हे मानव! सत्य वचन, स्वयं करता निर्माण अपने भाग्य का
फिर क्यों चिंतन,मनन है करता
जिंदगी में जितना तुमने है पाया
वह तेरे कर्मों का ही प्रतिफल है
कोई काम नहीं है ऐसा
जिसे तू ना कर पाएगा
हे मानव! तुम्हारे मंजिल और हौसला अगर हो बुलंद
जिसे जिंदगी की नैया पार करने की
है ठानी
वह जीवन की नैया इक दिन जरूर पार कर जाएगा
हे मानव! तेरे हाथों की लकीरें भी बदल जाएगी
अगर इरादा हो ऊंची उड़ान भरने का
हे मानव! तू व्यर्थ की चिंता मत कर
अपने भाग्य को मत कोसो
अच्छे कर्मों से तुम अपनी मंजिल
जरुर पाओगे
सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ता चला जा
एक दिन आस्मां को भी तू छू लेगा
भाग्य का क्या है..?
जितना भाग्य में मिलना है उससे न अधिक ना कम मिलेगा
ईश्वर से जितना मांग आया है उतना ही मिलेगा
तेरे हिस्से का मिलकर रहेगा
हे मानव! फिर तू चिंता क्यों है करता
चिंता मत कर आगे बढ़
बस कर्म किए जा फल की चिंता मत कर
लोभ, मोह के वशीभूत कोई कार्य न करना
धोखाधड़ी से दूर, पराई स्त्री पर बुरी नजर मत डालना
हे मानव! भाग्य तो जन्म से लेकर
मृत्यु तक तेरे साथ रहता है
जो हो रहा है और जो होने वाला है
वह कर्म ही है तेरा यही तेरे साथ जाएगा
हे मानव! तू उठ, चिंता मत कर भाग्य का
पिता मुक्त हो अपने पुण्य कर्म से जीवन को सफल बना
भाग्य के साथ जितनी ज्यादा उम्मीद रखोगे
वह उतना ही ज्यादा निराश करेगा
कर्म की ही प्रधानता होती है
कर्म करने पर जितना ध्यान दोगे
वो उम्मीद से सदा ही ज्यादा देगा

डॉ मीना कुमारी परिहार

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