शिव-वंदन
शिव-वंदन
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बाघंबरी धारण करें,शीश गंग की धार।
औघड़दानी,हे त्रिपुरारी,तुम हो जीवनसार।।
पशुपति हो तुम,करुणा मूरत,तुम ही दयानिधान।
तुम वरदानी,पूरणकामी,हे! मेरे भगवान।।
पार्वती ने तुमको पूजा,तुमको तब है पाया।
मंगलमयी मिलन तब भूषित,शुभ का मौसम आया।।
कार्तिके़य,गजानन आये,बनकर पुत्र तुम्हारे।
संतों,देवों ने सुख पाया, भक्त करें जयकारे।।
आदिपुरुष तुम,मंगलकारी,तेरा अनुपम प्यार।
नंदीश्वर तुम,एकलिंग तुम,तेरी हो जयकार।।
तुम फलदायी,सबके स्वामी,है तेरा गुण गान।
जीवन महके हर पल मेरा,दो ऐसा वरदान।।
कष्ट निवारण सबके करते,तुम हो श्री गौरीश।
देते हो भक्तों को हरदम,तुम तो नित आशीष।।
तुम हो स्वामी,अंतर्यामी,केशों में है गंगा।
ध्यान धरा जिसने भी स्वामी,उसका मन हो चंगा।।
तुम अविनाशी,काम के हंता,हर संकट हर लेव।
भोलेबाबा,करूं वंदना,हे देवों के देव ।।
तुम त्रिपुरारी, जगकल्याणक,महिमा का है वंदन।
बार बार करते हम सारे,तेरे मस्तक चंदन।।
तीन लोक पर राज तुम्हारा,महक रहा संसार।
औघड़ दानी,हे!त्रिपुरारी,तुम हो जीवन सार।।
-प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे
प्राचार्य
शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय, मंडला,मप्र