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(नवरात्रि विशेष ) मैहर मां शारदा की बड़ी बहन विजयराघवगढ़ की शारदा भवानी

(नवरात्रि विशेष )
मैहर मां शारदा की बड़ी बहन विजयराघवगढ़ की शारदा भवानी

१८ वी सदी के मध्य में जबलपुर जिले के उत्तरी भाग में बुंदेला शासन था।राजस्थान के घाट ख़ुटेटा ,,,, आमेर नामक जागीर से संबंधित ठाकुर भीम सिंह के पौत्र बेनी सिंह हजूरी पन्ना रियासत के प्रधान सेनापति थे , प्रबल परमारो ने एक बार पन्ना राज्य पर आक्रमण कर दिया था । गठौर रणक्षेत्र में बेनी सिंह हजूरी ने इन परमारो को परास्त कर दिया था।इसी विजय के उपलक्ष्य में तत्कालीन पन्ना महाराज छत्रसाल जी ने बेनी सिंह हजूरी को मैहर की सूबेदारी प्रदान की थी । बेनी सिंह की मृत्यु के बाद ठाकुर दुर्जन सिंह को मैहर की सूबेदारी मिली ।और उनके ज्येष्ठ भ्राता को पन्ना दरबार का प्रधानमंत्री बना दिया गया ।
बेनी हजूरी के पुत्र दुर्जनसिह की मृत्यु १८२६ में हो गई ,उनके दो पुत्र विशन सिंह , वा प्रयागदास की पारिवारिक अनबन हो गई। उसी समय राज्य समिति का आयोजन कर मैहर रियासत को दो भागों में बांट दिया गया । फल स्वरूप विशन सिंह को मैहर तथा प्रयाग दास को कैमूर विंध्य पर्वत का दक्षिणी इलाका मिला ।
राजा प्रयाग दास जी ने बंटवारे में शारदा माता की बड़ी बहन वीणा पुस्तक धारणी सरस्वती रूपा की मूर्ति जो कभी मैहर रियासत की कुलदेवी थी ,उन्हें अपने साथ लाकर मैहर के ही अनुरूप कृत्रिम पहाड़ी का निर्माण कर मां शारदा की मूर्ति स्थापना कराई थी ।
प्रयागदास जी बड़े कुशल शासक, एवं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राघव राम जी के अनन्य उपासक थे ।उन्होंने अपने आराध्य भगवान राघव जी का भव्य मंदिर एवं गढ़ का निर्माण करके अपनी रियासत का नाम विजयराघवगढ़ रखा। विजयराघवगढ़ रियासत में मुड़वारा, स्लिमना बाद ,तक का क्षेत्र आता था ।प्रयागदास जी ने अपनी रियासत में राम बाग अखाड़ा, गोरहा अखाड़ा , जोवी अखाड़ा,मुंहास एवं विजयराघवगढ़ में अनेक दर्शनीय मंदिरों के निर्माण के साथ सुंदर बागों से अपनी रियासत को समृद्ध बनाया था।
१८४५ में प्रयागदास जी की अचानक मृत्यु हो गई ,उस समय विजयराघवगढ़ के किले का निर्माण अधूरा ही रह गया। उनके नाबालिग पुत्र सरयू प्रसाद को ब्रिटिश हुकूमत ने विजयराघवगढ़ राज्य सहित कोर्ट ऑफ वार्ड्स के तहत झांसी की तर्ज पर अधिग्रहित कर लिया ।
१८५७ की क्रांति में अंग्रेजों ने राजद्रोह के जुर्म में सरयू प्रसाद सिंह को गिरफ्तार करके काले पानी की सजा दे दी।एवं विजयराघवगढ़ रियासत को लूट लिया।
१८५७ से विजयराघवगढ़ के सभी देवालय किला खंडहर अवशेषों के रूप में लावारिश हालतों में रहे।किले को भारत सरकार ने पुरातत्व महत्व का संरक्षित किला घोषित किया।
विजयराघवगढ़ रियासत में शारदा मंदिर भी १९८५ तक लावारिश रहा । १९८५ में शारदा मंदिर के प्रधान पुजारी देवी प्रसादजी एक स्वप्न के बाद नवरात्रि में खंडित पड़े शारदा मंदिर को पुनरुद्धार किया ।
मैहर माता मंदिर चूंकि शासनाधीन हो गया ,और प्रबंधकों की देख रेख में समयानुसार ख्याति अर्जित कर गया । वहीं विजयराघवगढ़ माता का मंदिर रामबाग अखाड़े के पुजारी के वंशज जगदीश कुमार त्रिपाठी जी के वंशजों की देख रेख में है।
नवरात्रि में मैहर की ही भांति विजयराघवगढ़ में भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।वहीं विजयराघवगढ़ में बंजारी माई का मंदिर भी शारदा मंदिर से भी प्राचीन माना जाता है। यहां बंजारों की कुलदेवी एक अति प्राचीन विशाल बट वृछ में स्थापित हैं। इस बंजारी माई में नवरात्रि में दूर दूर से श्रद्धालु आकर मन्नत मांगते हैं।

पंडित सुरेन्द्र दुबे
विजयराघवगढ़

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