Search for:

हिन्दी

हिन्दी

हिन्दी हम अपने दिल मे बसा के रख ले तो क्या ‘ हम अपने घर से अँग्रेजी के अस्तित्व को मिटा नही सकते ।
लाख कोशिश करे हम कितने ही हिन्दी बचाओ के आंदोलन पर ‘अँग्रेजी कि छुअन से खुद के बच्चों को बचा नही सकते ।
अँग्रेजी भाषा मेरे जहन से चिपकी ‘फिर भी मैं साहित्य का कंगारु हूं ।
स्वाभिमान हिन्दी का बचाने मैं आज भी ‘अपनी जिद पर उतारु हूं ।
भले ही मेरे बच्चे करते हो अँग्रेजी माध्यम से पढ़ाई ।
पर इससे क्या मुजको फर्क पङ़ता ‘ मुझको तो शोहरत के पहाड़ पर करना हे चढ़ाई ।
मैं शारदे के वरदानों से करता रहता हिन्दी कि प्रभु से विनती ।
पर मेरी लाचारी तो देखो भाई मेरे बच्चे हंडरेड तो समझते आसानी से पर ‘हिन्दी मे लिख नही पाते १०० तक गिनती ।
बदल सकता नही अपने बच्चों के संस्कार ‘ पर लोगो को बदलने कि रखता अपने मन मे अभिलाषा ।
क्या करूं मैं विवश पिंजरे के पंछी सा ‘ दिखलाउ अपने वजुद को बङ़ा बनाने का हर रोज नया तमाशा ।
मेरे बच्चे स्वंय लिख रहे मेरे ही घर मे ‘ टाटा ‘बाय २ हाय ‘हलो कि हर रोज नई कहानी ।
मैं तो हिन्दी भाषी हूं भाई पर कुछ नही कर पाउ जो मेरे घर मे राज करे अँग्रेजी महारानी ।
जी करता हे मैं मां हिन्दी कि खातिर ‘ अपने बच्चे अपना परिवार छोङ दूं ।
पर मेरे बस कि बात नही कि मैं अपने खुद के बच्चों के हाथो से छीन ‘ विदेशी भाषा कि तलवार तोङ़ दूं ।

भैरु सुनार
मनासा मध्यप्रदेश

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required