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आदमी

आदमी

आजकल का आदमी,
शैतान बनता जा रहा है l
भूल कर निज सादगी,
हैवान बनता जा रहा है ll

बात कोई भी रही हो,
पालने में आज उसके l
माँ -बाप के अज्ञान से,
हैवान बनता जा रहा है ll

माँ -बाप को फुर्सत नहीं,
मिलती अभी है काम से l
बेटा सदा इसी नादानी से,
हैवान बनता जा रहा है ll

बेटा चाहे कुछ भी करें,
हम पूछते भी हैं नहीं l
बस इसी अंदाज में वह,
हैवान बनता जा रहा है ll

सरकार को हम कोसते,
गलती हमारी ही सदा l
बिन डाँट और फटकार के,
हैवान बनता जा रहा हैं ll

पैर बेटा के सदा ही,
पालने में दीख जाते l
माँ – बाप की अनदेखी से,
हैवान बनता जा रहा है ll

बेटे को सपने में भी,
न सीख दे पाए कभी l
बस इसी अंदाज में,
हैवान होता जा रहा है ll

अस्मते नित लुट रहीं,
माँ -बाप फिर भी मौन हैं l
मौन हो तुम इसलिए,
हैवान होता जा रहा है ll

आदमी कहने लगा,
कि कलियुग आरहा है l
पाप की गठरी धरे,
हैवान होता जा रहा है ll

जानवर तो जानवर का,
ही भोजन करते सदा l
इंसान को खाने में वह,
हैवान होता जा रहा है ll

समाज में रहता है,
पर सामाजिक है नहीं l
फिर गयी बुद्धि तभी,
हैवान होता जा रहा है ll

नीड़ में रहता है पक्षी,
पक्षियों के भाव से l
महल में है रह रहा,
हैवान होता जा रहा है ll

आजकल बेटा नहीं,
माँ -बाप से पूछे कभी l
गर्व के इस भाव से,
हैवान होता जा रहा है ll
ज्ञान की पुस्तक कभी,
रखता नहीं बस्ते में वह l
अज्ञान के तम में फँसा,
हैवान होता जा रहा है ll

दोषी सदा सरकार ही,
है दीखती हर व्यक्ति को l
पर है वही भक्षक सही,
हैवान होता जा रहा है ll

हम आज भी उतारते हैं,
उसकी आरती समाज में l
वह समाज की ही आड़ में,
हैवान होता जा रहा है ll

कंगाल यदि कोई अगर,
तो दोष सब उसका ही है l
कंगाल है बस इसलिए,
हैवान होता जा रहा है ll

आज हर मानव नहीं,
इंसान बन पाया अभी l
इंसानियत रख ताक पर,
हैवान होता जा रहा है ll

आजकल नदियों का जल,
मीठा नहीं अब रह गया है l
नित गंदगी करता मनुज,
हैवान होता जा रहा है ll

मानवों में मित्रता तो,
मित्रता अब है कहाँ?
मित्रता को छोड़ अब,
हैवान होता जा रहा है ll

बात यदि पूछे किसी से,
तो बात वह करता नहीं l
बिन बात की ही बात में,
हैवान होता जा रहा है ll

डॉ. बिश्वम्भर दयाल अवस्थी
शिक्षक एवं साहित्यकार
खुर्जा, बुलंदशहर (उ. प्र.)
पि. नं. 203131

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