भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों का सूक्ष्म वर्णन मेरी इस रचना में आप सबके समक्ष प्रस्तुत है
भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों का सूक्ष्म वर्णन मेरी इस रचना में आप सबके समक्ष प्रस्तुत है –
विविध रूप हरि धरते हैं
श्रीहरि गाथा अनंत है,जिसका न कोई अन्त है।
जिनकी साधना में लीन,बैठा हर साधु-संत है।
दुनिया के पालन कर्ता, क्षीरसागर करें विश्राम।
मुरलीधर श्री कृष्ण यही, धनु धारी सियापति राम।
जब बढ़ता पाप धरा पर,श्री विष्णु लेते अवतार।
पाप, अधर्म को मिटाकर, जगत का करते उद्धार।
जमदग्नि रेणुका के सुत, भृगुकुल नंदन परशुराम।
महादेव के परम शिष्य, अरि का करें काम तमाम।
कृष्ण रुप धारण करके,जग को गीता ज्ञान दिया।
राम अवतार में हरि ने,पित आज्ञा को मान दिया।
मानव कल्याण की खातिर, ऋषभदेव का रूप धरा।
असि, मसि, विद्या उपदेश दे,हर मानव का कष्ट हरा।
हंस अवतार से खोए,वेद शास्त्रों को पाया।
सनकादि मुनि ने जगत को, वेदों का ज्ञान कराया।
प्रथम मानवीय अवतार, जिसका मुख वराह समान।
हिरण्याक्ष का संहार कर,दिया पृथ्वी को सम्मान।
समस्त वेदों के ज्ञाता,वीणा वादक, कवि महान।
कुशल वक्ता महर्षि नारद,हर विपदा का समाधान।
भू के संरक्षक देवता,नर नारायण संत रुप।
धर्म और अहिंसा के सुत,पतित पावन रुप अनूप।
सांख्यशास्त्र के जनक, कपिल स्मृति के रचनाकार।
सर्व गुणों की खान कपिल, विष्णु के पंचम अवतार।
शक्तिशाली,उग्र, भद्र रुप ,सर सिंह का, धड़ नर समान।
हिरण्यकश्यप के नाशक, हरि रुप नरसिंह भगवान।
जिनके पिता महर्षि अत्रि,मात का अनुसूया नाम।
तीन शीश और छह भुजा, दत्तात्रेय ज्ञान के भाम।
मानव कल्याण की खातिर,सुयज्ञ रुप प्रभु ने धारा।
प्रजापति दक्ष व आकृति के,जीवन का बने सहारा।
सृष्टि की रक्षा की खातिर, मत्स्य रुप किया धारण।
हयग्रीव दानव वध किया,वेद रक्षा की नारायण।
धरती के पहले राजा,पृथु धरती स्वर्ग बनाई।
पृथु भूमि सतह की समतल,मानव की करी भलाई।
सागर मंथन की खातिर,लिया कच्छप का अवतार।
जगत रक्षक का काम किया, बने मथनी का आधार।
कृष्णा पक्ष की त्रयोदशी, धन्वंतरि लिए अवतार।
आयुर्वेद प्रवर्तन कर,किया मानव पर उपकार।
समुद्र मंथन के बाद में,अमृत लिए असुर जब छीन।
देवों की रक्षा के लिए, मोहिनी स्वरूप धर लीन।
शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि,वामन रुप भू पधारे।
तीन पग में नापी धरा,बलि दंभ चूर कर डारे।
कपिलवस्तु राज्य जन्में, गौतम बुद्ध संत महान।
सत्य, अहिंसा, सत्कर्म का,सकल सृष्टि को दिया ज्ञान।
कुपित हो लक्ष्मी ने दिया, श्रीविष्णु जी को जब श्राप।
हयग्रीव रूप जन्म हुआ, जिनसे मिटा जग संताप।
आर्त गज की स्तुति सुनकर, प्रकट भए श्रीहरि स्वामी।
मगरमच्छ शीश काट कर,गज जीवन डोरी थामी।
हंस रुप में प्रकट हुए, लक्ष्मी के पति नारायण।
सनकादि मुनि संदेह का,पल भर में किया निवारण।
सत्यवती पुत्र रुप में, वेदव्यास का हुआ जन्म।
महाभारत के रचयिता,जीवन का बताया मर्म।
लक्ष्मी खोजने के लिए,लिया बालाजी अवतार।
वेंकटेश्वर श्रीहरि का, यश फैला सकल संसार।
चौसठ कलाओं से युक्त,अब होगा कल्कि अवतार।
धरती पर आकर श्री हरि,जग का करेंगे उद्धार।
धर्म स्थापना की खातिर, विविध रूप हरि धरते हैं।
न्याय सभी को मिलता है,पापी,दानव मरते हैं।
राम जी तिवारी “राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)