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जगन्नाथ रथयात्रा

जगन्नाथ_रथयात्रा,

अषाढ़ शुक्ल द्वितीया है पावन,
पुरी में जगन्नाथ रथोत्सव,मानी
प्रभु जगन्नाथ,बलभद्र,सुभद्रा,
रथ में विराजित,लागत,सुमन।।

दो भाईओं के बिच,बहन पूजित
विश्व में अनूठा परंपरा,जगजीत
आवालवृद्धबनीता के आराध्य,
सुशोभित,मंजर,मनोहर,सुभद्रा।।

झलक पाने उमड़े,जन,सैलाब,
तिन रथों का चलना,गुल,गुलाब
शंखनाद,घंटवाद,होलाहोली,
ललना,लली प्रफुल्लित,आली।।

ऐसा दिव्य नज़रा अविस्मरणीय
भागम-भाग में दृश्य,शोभनीय,
गुब्बारा,मीठा,खिलौना का ठेला
कमनीय अति,विभोर लाल,बाल।।

श्रद्धालूओ का जमावड़ा,मोहन,
कालिया दर्शन चाह,सारा जहां,
जय जगन्नाथ शोर आप्लावित,
एकैक विधि-विधान,नया आहुत।।

चिर पुरातन नित्य नवीन,पर्व,
न केवल ओड़िशा,भारत,अथर्व
रस्सी खिचने का जो सिलसिला
वास्तव में जन्नत आलम,मृणाल। ।

श्रीमती अरुणा अग्रवाल
लोरमी, जिला मुंगेली, छ, ग,

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