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राष्ट्रभाषा हिंदी

राष्ट्रभाषा हिंदी

रविवार का दिन था।आज महानगर के सबसे बड़े हाल में अंतरराष्ट्रीय संस्कृति परिचय सम्मेलन आयोजित किया गया था ।
सामने खड़े चपरासी ( आगंतुक एक सज्जन को रोकते हुए ) :-अरे, अरे ! कौन हो भाई और इस वेश भूषा में कहां घुसे चले आ रहे हो ? ये वी. आई. पी. लोगों का अंतरराष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम है । यहां हर किसी का प्रवेश वर्जित है ।

आगंतुक सज्जन (अपना आमंत्रण कार्ड दिखाते हुए ) :- कोई बात नहीं,ये रहा मेरा परिचय व प्रवेश पत्र,आज मेरा भी यहां पर उद्बोधन है । वह अंदर जाकर अपने पूर्व निर्धारित स्थान पर बैठ जाता है । उपस्थित सभी अपने क्रम में उद्बोधन दे रहे थे ।
आगंतुक सज्जन अपने बारी आने पर मंच की ओर प्रस्थान करता है ।

माइक के पास खड़े होकर संक्षिप्त अभिवादन पश्चात् अपना परिचय देते हुए कहता है :- मेरा नाम हिंदी है । मेरे देश हिंदुस्तान में मुझे हिंदी भाषा के रूप में जाना जाता है । मेरे अंदर 52 अक्षर है मुझमें निहित सुसंस्कार आपको मेरे शब्दों में ही मिल जाएगा ।
मैं आदि अनंत से सनातन संस्कृति के रूप में जाना जाता रहा हूं ।मेरा उद्भव संस्कृत से ही हुआ है ।

उद्बोधन सुन रहे एक युवक ने उनको बीच में ही टोकते हुए कहा :- ओ अंकल ज्यादा डींग मत हांकिये, अपने को महान मत बतलाइए ।
सज्जन(हिंदी) :- हां बेटा, बताओ अभी आपने मुझे क्या रिश्ता से संबोधित किया ?
युवक :- अंकल
सज्जन (हिंदी) :- मतलब मैं आपके पिता का भाई, माता की भाई, पिता के बहन का पति या फिर मौसी के पति इनमें से कौन से रिश्ते ?

युवक (हड़बड़ाते हुए) :- अ अ,,,,अंकल मेरा मतलब,,, अंकल ,मेरे पिता सम ।
सज्जन (हिंदी) :- हां बेटे, हमारे संस्कृति में सभी रिश्ते को अलग-अलग मौसा- मौसी, चाचा- चाचा, मामा- मामी इस प्रकार संबोधित करते हैं, जिससे उनका अपना अलग ही पहचान बनता है और यही हमारी विशेषता है । किंतु आप इन सभी रिश्ते के लिए एक ही शब्द का प्रयोग करते हैं ।आपके भाषा में अक्षरों की संख्या मात्र 26 ही है ।

युवक :- किंतु आपको तो अपने ही देश में इतना महत्व कहां मिल पाता है ।

सज्जन (हिंदी) :- ऐसी कोई बात नहीं । मेरे देश के 85% लोग मुझे जानते हैं , मेरे ही माध्यम से वह अपनी भावनाओं का आदान-प्रदान एक दूसरे से अच्छी तरह से कर लेते हैं ।
मेरे गांव के भोले भाले लोग तुम जैसे आज के कथित विद्वानों को तो ठीक से समझ भी नहीं पाते ।तुम्हे अच्छे से जानने पहचानने के लिए उन्हें मेरा ही सहारा लेना पड़ता है ।

सज्जन (हिंदी) :- अपनी बात आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं कि आपको चिकित्सक की भाषा में,बैंको की खाता में या फिर उच्चअदालत की महत्वपूर्ण फैसले में सभी जगह समझने के लिए लोगों को मेरा ही सहारा लेना पड़ता है ।

आप लोगों को भले ही अंतर्राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त है किन्तु बहुत ही जल्दी मैं अपने हिंदुस्तान में उस शिखर को प्राप्त करने जा रहा हूं जहां मुझे एक विशेष नाम से जाना जाएगा “राष्ट्रभाषा हिन्दी” ।

।। जय हिन्द, जय भारत ।।

बसंत कुमार “ऋतुराज”
अभनपुर

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