मन को प्रबोध
मन को प्रबोध
अरे मन गुरु चरणों में ध्यान धरो,
व्यक्ति नहीं गुरु शक्ति होत हैं,ऐसो भाव भरो,
मातु पिता शिक्षक गुरु होते, इनके सदृश जो होते,
ज्ञान-विज्ञान बतायें रीति-नीति जीवन की सिखायें,
सभी पूज्य गुरुजन होते हैं।
इनको नमन करो गुरु चरणन सब तीर्थ बसत हैं,
अजस्र प्रेम रसधार स्रवत हैं,नित स्नान करो,
लोक और परलोक सुधारत,
पाप ताप दुःख रोग नसावत,
शक्ति पुंज, गुरू ज्ञान कुंज,गुरु ज्योति पुंज,
गुरु उर अंतर मणि दीप जगावत।
जनम जनम को जंग लगो तन,गुरू पारस बन कंचन तोहि करो गुरु पद कंज सुहावन उपवन,
मधुकर बन विहरो, गुरु पद कमल मधुर मकरंद
सुधा रस पान करो।
प्राण प्राण में गुरु बसत है, श्वास श्वास में गुरु विचरत है
परमेश्वर को रूप परम गुरु, वंदन नमन करो,
अरे मन जीवन सफल करो, अरे मन गुरु चरणन
को चित्त में धरो, जीवन सफल करो।
सुभद्रा द्विवेदी लखनऊ