कान्हा! तेरे देश में..
कान्हा! तेरे देश में...
कान्हा! तेरे देश में…
भारतमाता बिलख रही,
गौमाता के रूप में।
देख, गौ वंश का ढेर।
यह कैसा अंधेर?
हो रही देर?
या सच में अँधेर?
कान्हा! तेरे देश में
गौमाता का ढेर।
गौमाता भारतमाता,
सदियों से संतान- हित
ले रही जो साँस,
आज उसी पर आँच!
क्यों देर- अंधेर?
वक्त का यह कैसा फेर?
कान्हा! तेरे देश में
गौमाता का ढेर।
घी- मक्खन का स्वाद ले,
तीज- त्यौहार मनाते हम।
गौ की दुर्बल पीठ पर,
सारे जश्न मनाते हम।
नहीं फिर भी खैर!
कान्हा! तेरे देश में
गौमाता का ढेर।
नित उठ शक्ति, चाय की
चुस्की से मिलती,
बिन चाय के पड़ोसिन
भी न मिलती।
होगा कब सवेर?
कान्हा! तेरे देश में
गौमाता का ढेर।
गौ दुग्ध पी, बुद्धि वृद्धि
पा जाती; घी से जीवनी
शक्ति सात्विकी आती;
“आयुर्घृतम् ; आयुर्बलम्”
कैसी समझ, कैसा फेर!
कान्हा! तेरे देश में
गौमाता का ढेर।
गौमाता के श्रृंग पर
सकल धरती का बोझ
जन-जन को आधार मिलै,
जगमाता गौमाता को बोझ!
हत्या तिस पर कर रहा,
ये नरपशु ये शेर!!
कान्हा! तेरे देश में
गौमाता का ढेर।
गौरक्षा गौसेवा में जुट
क्यों न जाते हम?
गौपालों के देश में
कैसे कृतघ्न हो गए हम?
लिया तमस ने घेर!
कान्हा! तेरे देश में
गौमाता का ढेर।
अक्षयलता शर्मा