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(पुस्तक समीक्षा) दीप्ति….अंदर की रोशनी: एक प्रकाश पुँज

(पुस्तक समीक्षा)
दीप्ति….अंदर की रोशनी: एक प्रकाश पुँज

समीक्षक:- सुधीर श्रीवास्तव

पिछले दिनों युवा कवयित्री/शिक्षिका दीप्ति सक्सेना दीप का कविता संग्रह प्राप्त हुआ। मन में यह भावना तो वैसे भी रहती है कि किसी भी पुस्तक को पढ़ने के बाद अपने विचार/समीक्षा लिखूँ। पर बहुत बार ऐसा नहीं कर पाता, क्योंकि स्वास्थ्य इजाजत नहीं देता। जिसकी वजह से कई सारी पुस्तकें पढ़ने के बाद भी मेरी इस भावना से सम्मानित नहीं हो पातीं, जिसका अफसोस भी होता है। खैर….. यह सब जीवन का हिस्सा है और जीवन में सबकुछ हमारे चाहने से हो हीनहीं सकता।
सबसे पहले तो मैं दीप्ति की उच्च भावनाओं के प्रति नतमस्तक हूँ कि उन्होंने अपना संग्रह अपने पिताजी को समर्पित कर उनका गौरव बढ़ाया। भौतिक शरीर त्याग के बाद भी मुझे लगता है कि एक बेटी का अपने स्वर्गीय पिता के लिए इससे बेहतर तोहफा और क्या हो सकता है।जिसके माध्यम से उनकी उपस्थिति संसार में बनी रहने वाली हो। साथ ही पिता कि चिर स्मृतियों के परिप्रेक्ष्य में अपने मन के अननतिंम भाव को ‘फिर ये किस्सा कौन सुनाता?’ के माध्यम से अपने जीवन में पिता का संपूर्ण चित्रण प्रस्तुत किया है। जिसकी अंतिम चार पंक्तियां पिता की महत्ता कह रही हैं-

प्रेरणा शक्ति,मेरा अभिमान,
पिता हैं दृश्य विधाता।
मिलता न आशीष अपरिमित,
फिर ये किस्सा कौन सुनाता?

‘मां का शुभकामना संदेश’ में दीप की माँ जी मंजु सक्सेना ‘मंजुल’ (संयोजिका- काव्य दीप हिंदी साहित्यिक संस्थान) लिखती हैं -कि दीप ने शिक्षा और साहित्य दोनों धाराओं को एक साथ लेकर उसने शीघ्र ही अपना अनोखा स्थान बना लिया। उसने उनका सिर गर्व से ऊंचा किया है।

वरिष्ठ कवि साहित्यकार, संगीतज्ञ, गायक अनूज जालान महसूस करते हैं कि दीप की कविताओं में मन की तपस, सुमन सा स्नेह, अंतर की प्यास और मन की भावनाएं हैं।

कवयित्री लेखिका चित्रकार डा. अपर्णा प्रधान जी की समीक्षा के अनुसार दीप्ति की कविताएं पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि गागर में अपनी भावनाओं का सागर समेट लिया है। दीप्ति ने अपने मन के मन उद्गार शब्दों की माला में पिरोकर बहुत उम्दा ढंग से कविताओं में प्रस्तुत कर के पन्नों का श्रृंगार किया है।

नवाचारी शिक्षिका/ लेखिका पल्लवी शर्मा का मानना है कि आपकी (दीप्ति) रचनाएं कहीं भी पढ़ ली जाएँ, काव्य गत विशेषताओं के आधार पर पहचान में आ ही जाती हैं।

गायिका, संगीतज्ञ एवं साहित्यकार डा. सुरुचि मेहता मानती हैं कि दीप्ति की कविताओं में एक अनोखा खिंचाव है। मन की उभ-चुभ शब्दों के साथ तैरती हुई पाठक को एक ऐसी दिशा में ले जाती है, जो बाहर के भी परिवेश को दर्शाती है, और साथ साथ अपने अंदर झांकने को विवश करती है।

प्रस्तावना में लेखिका कि भावों का बहाव कुछ न ए रास्तों पर ले गया,तो कुछ कुछ पुराने रास्तों को न्यु दृष्टि दिखा गया। मन को उद्वेलित करके जो भावनाएं लेखनी की स्याही के माध्यम से कागज पर बहती चली गईं, उन्हीं को समेटकर आप सबके समक्ष प्रस्तुत किया है।
दीप्ति की कविताओं में जीवन के अनेकानेक उतार चढ़ाव, संघर्ष, वेदना, झंझावातों, अनुभवों का खूबसूरत शब्द चित्र है।
अंदर की रोशनी से मेरा यकीन उम्मीद पे जिंदा ख्वाहिशें आईना है जिंदगी का पक्षाघात का काला धब्बा सरीखा है। इंतजार का सफर झूठी दिलासा देता राह का सवेरा यादों की गुल्लक लिए बेख्याल होना अच्छा होता है।
अपराजिता का वो प्रेम पत्र बवाल की जड़ औरत का अखंड सौभाग्य, सूना आँगन चार दिन की जिंदगी नारी का भ्रम, कुछ अनकही, कुछ अनसुनी सी उदासी की फफूंद बन मन की वीरान कोठरी में गुमशुदा मुस्कराहट उम्र सोलह की मेरी सीढ़ियां चढ़ती बेटियों को बाज बनने दो की अभिलाषा में सुबह अलसाती नहीं है। मिलन का वादा अधूरा प्रेम भ्रम बनती हुई स्त्री की नियति सरीखी है।
‘दीप्ति…… अंदर की रोशनी’ की रचनाएं अनुभवों की गहराई से झांकती प्रतीत होती हैं, आपसी संवाद से मुखर होकर शब्दों में विचरण करती हैं। नारी विषयक रचनाओं को प्राथमिकता दी गई है। नारी मन को पढ़ने की कला दीप्ति की रचनाओं में साफ झलकता है।
संक्षेप में इतना कि संग्रह की रचनाओं को पढ़ने के बाद पाठक विचारों की दुनिया में सैर करने को विवश होगा, यही लेखिका की सफलता का कारक बनेगा। इतनी सी उम्र में ही इतनी पैनी नजर और गूढ़ चिंतन भविष्य का सुखद संकेत है, जिस पर अडिग रहने का अतिरिक्त दायित्व भी दीप्ति के कंधों पर है।
अंत में प्रस्तुत काव्य संग्रह ‘दीप्ति……अंदर की रोशनी’ की सफलता के प्रति आशान्वित होते हुए सफलता की कामना के साथ दीप्ति के उज्ज्वल सुखद भविष्य की शुभेच्छा रखता हूँ।

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