कीमती सूट (लघुकथा)
कीमती सूट (लघुकथा)
ओमशंकर अपनी बेटी गौरी को सूट दिलाने के लिए रेडीमेड गारमेन्ट्स की एक बड़ी दुकान पर आया था। गौरी उसकी इकलौती बेटी थी। वह कक्षा ग्यारह में पढ़ती थी। ओमशंकर की ससुराल में एक शादी थी जिसमें उसे सपरिवार शामिल होना था। इसलिए ओमशंकर चाहता था कि वह गौरी को एक कीमती सूट दिलाए।
ओमशंकर और गोरी दोनों दुकान में सूट पसंद करने में लगे हुए थे। काफी देर में एक सलवार सूट ओमशंकर को पसंद आया। उसने सोचा कि यह सूट गौरी पर खूब जचेगा। उसने सेल्समैन से सूट की कीमत पूछी। सेल्समैन ने बताया कि डिस्काउन्ट के बाद यह सूट उसे चौदह सौ सत्तर रुपये में मिलेगा। ओमशंकर की जेब में पन्द्रह सौ रुपये थे।
सूट की कीमत ओमशंकर की हैसियत के हिसाब से कुछ ज्यादा थी, मगर हिम्मत करके उसने सूट खरीदने का निश्चय कर लिया। उसने गौरी को आवाज लगाई-“ गौरी बेटा! देखो मैंने तुम्हारे लिए यह सूट पसन्द किया है।“
गौरी ओमशंकर के पास आई। उसने सूट को उलट-पलट कर देखा। स्लिप पर पड़ी कीमत को देखकर वह बोली-“मगर पापा मुझे यह सूट पसन्द नहीं है।“
“क्या ?“ ओमशंकर भौंचक्का रह गया। उसके चेहरे का रंग फीका पड़ गया।
गौरी तेजी से गई और तीन पैकेट उठाकर लाई। एक पैकेट खोलते हुए वह बोली, “पापा मुझे यह सूट पसन्द है।“
ओमशंकर हैरान था। वह सुरमई रंग का सलवार सूट था और उसकी कीमत सिर्फ चार सौ सत्तर रुपये थी।
इससे पहले कि ओमशंकर कुछ कहता, गौरी बोल पड़ी-“पापा! मैंने दो चीजें और पसंद की हैं। यह एक शर्ट आपके लिए और यह साड़ी माँ के लिए और इन तीनों की कीमत चैदह सौ सत्तर रुपये है।
“मगर शर्ट और साड़ी की क्या जरूरत है ?“ ओमशंकर ने कहा।
“पापा! शादी में अकेले मैं ही थोड़े जा रही हूँ। आप और मम्मी भी तो चल रहे हैं। फिर आप क्या वहां यह पुरानी शर्ट पहने अच्छे लगेंगे ? और मम्मी तो एक ही साड़ी पहने वहां जाने कितनी बार जा चुकी हैं।“ गौरी बोली।
दुकानदार ने प्रशंसा भरी नजरों से गौरी को देखा था। ओमशंकर को इस बात पर गर्व हो रहा था कि वह बेटी का पिता है।
सुरेश बाबू मिश्रा
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