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गीत

गीत

इस दिन के ही लिए तुम्हे क्या पाला पोसा बेटा जी।
मम्मी पापा को वृद्धा आश्रम में डाला बेटा जी।।
गीले बिस्तर पर सोकर तुमको छाती पर रखती थी।
प्यारा नन्हा मुन्ना कह तुमको पुचकारा करती थी।।
अपने खाती नही मगर तुमको मैं खाना देती थी।
सारा दुख ओ दर्द तुम्हारी खातिर मैं सह लेती थी।।
इसका फल यह कैसा तुमने आज दे दिया बेटा जी।।
कड़ी धूप में तुम्हरी खातिर पापा देह जलाते थे।
चूल्हे पर तो रोज हाथ मम्मी के भी जल जाते थे।।
गदहा घोड़ा हाथी बन वो अपनी पीठ चढ़ाते थे।
कंधों पर तुमको बैठा गंवई का सैर कराते थे।।
अरमानों की चिता जला विश्वास को तोड़ा बेटा जी।।
अपने को गिरवी रख हमने तुमको बहुत पढ़ाया था।
सुख दुनिया का तुम्हरी खातिर दोनो ने ठुकराया था।।
जिसकी हो औलाद नहीं उसकी तो चल चल जाएगा।
पर जिसकी हो वो अपना मुंह जग को क्या दिखलाएगा।।
बीवी के आते गिरगिट सा रंग दिखाया बेटा जी।।
तुमने तो सब बेटों को बदनाम कर दिया बेटा जी।
तुम तो मेरे श्रवण थे पर आज हुआ क्या बेटा जी।।
इस दिन के ही लिए तुम्हे क्या पाला पोसा बेटा जी।
मम्मी पापा को वृद्धा आश्रम में डाला बेटा जी।।

कवि गीतकार ब्रह्मानंद तिवारी पुष्प धन्वा

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