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देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता/ हिन्दी भाषा का इतिहास

देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता/
हिन्दी भाषा का इतिहास

“देवनागरी लिपि का कोई जवाब नहीं
यह लिपि जितनी मधुर है उतनी ही सरल और सहज”
भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत की लिपि को देवनागरी लिपि कहा जाता है। लिपि का प्रयोग वैदिक युग के पूर्व से ही होता आ रहा है।
देवनागरी का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। यह एक स्थानीय ध्वन्यात्मक लिपि है जो प्रचलित लिपियों (रोमन ,अरबी ,चीनी आदि) मैं सबसे अधिक वैज्ञानिक है। भारत की
कई लिपियां देवनागरी से बहुत अधिक मिलती-जुलती हैं, गुजराती गुरुमुखी आदि।
देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता का मूलाधार है उसका आंतरिक पक्ष और आंतरिक पक्ष से तात्पर्य लिपि में निहित उन तत्वों से है जिनसे सैद्धांतिक पीठिका पर यह अपनी वैज्ञानिकता स्थापित कर पाई है।
“आओ हम सब मिलकर दे सम्मान
निज भाषा पर करें अभिमान
हिंदुस्तान के मस्तक की बिंदी
जन-जन की आत्मा बने हिंदी”
देवनागरी लिपि को सबसे अधिक
वैज्ञानिक विधि इसलिए माना जाता है क्योंकि जैसी लिखी जाती है ,वैसी ही बोली जाती है तथा इनके उच्चारण के निश्चित स्थान है हैं और उन निश्चित स्थान से ही उनका उच्चारण होता है।
देवनागरी लिपि का प्रारंभिक रूप पहले सीधा सादा था। सभ्यता के विकास के साथ आकर्षक तथा व्यवस्थित करके वर्तमान रूप में लाया गया। पाणिनि के व्याकरण ग्रंथ’ अष्टाध्यायी’ के अनुसार 11 स्वर और 38 व्यंजनों का समावेश हुआ है। व्यंजन में 25 वर्ण स्पर्श,4 वर्ण,अंतस्थ और 4 वर्ग हैं। यह देवनागरी लिपि का परिवार है। टंकण सुविधा की दृष्टि से वर्तमान में लिपि संकेतों में आवश्यक परिवर्तन तथा संशोधन भी किया गया है। व्यंजनों में स्वारा -भाव दिखाने के लिए हलंत लगाना पड़ता है।
किस प्रकार देवनागरी लिपि के प्रत्येक वर्ण प्राय: निर्दोष हैं। टंकण की सुविधा को ध्यान में रखते हुए देवनागरी लिपि के स्वर्, व्यंजन, संयुक्त अक्षर, पूर्ण विराम आदि लेखन में जो बदलाव लाए गए हैं, इतना तो मानना ही होगा कि उससे भी उससे लिपि के आकार गठन का सौंदर्य कम हो गया है। साथ ही संयुक्त अक्षरों की उच्चारण शुद्धि में भी विकार की संभावना बढ़ गई है। अतः इस दिशा में और भी अधिक सावधानी से संशोधन की गुंजाइश है। जो भी हो, देवनागरी लिपि अपने वर्तमान रूप में निर्दोष है।
देवनागरी लिपि की विशेषताओं को बताने के क्रम में अक्सर कहा जाता है है कि यह वैज्ञानिक लिपि है।ये हैं देवनागरी लिपि की विशेषताएं —
एक ध्वनि के लिए एक वर्ण हो
एक वर्ण एक ही ध्वनि को व्यक्त करें
लेखन और उच्चारण में एकरूपता हो
सरल एवं स्पष्ट हो
उच्चारण एवं लेखन में व्यवस्थित हो
एक ध्वनि के लिए एक वर्ण हो
एक वर्ण एक ही ध्वनि को व्यक्त करे
लेखन और उच्चारण में एकरूपता हो
उच्चारण और लेखन में व्यवस्थित हो
हिंदी भाषा विश्व की प्राचीन भाषाओं में से एक है ,जो विश्व में तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत के अलावा हिंदी और उसकी बोलियां विश्व के अन्य देशों में भी बोली पढ़ी और लिखी जाती हैं।
मांरीशस नेपाल गयाना, फ़िजी और संयुक्त अरब अमीरात में भी हिंदी भाषी लोगों की बड़ी संख्या मौजूद है।
“भारतीय इतिहास को बनाई गौरव गाथा
भविष्य को साकार करेगी हिंदी
जन जन के भाषा का मूल है हिंदी
भारतभूमि की भाषा है हिंदी
हिंदी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। संस्कृत भारत की सबसे प्राचीनतम भाषा है। जिसे देवभाषा भी कहा जाता है। हिंदी इसी देवभाषा की उत्तराधिकारी मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है हिंदी का जन्म संस्कृत की ही कोख से हुआ है। संस्कृत संस्कृत हिंदी भाषा की जननी है।
भारत में संस्कृत ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व तक रही, भाषा दो भागों में विभाजित हुई वैदिक और लौकिक। वेदों की रचना जिस भाषा में हुई उसे वैदिक संस्कृत कहा जाता है। जिसने वेद और उपनिषद का जिक्र आता है, जबकि लौकिक संस्कृत में दर्शन ग्रंथों का जिक्र आता है। इस भाषा में रामायण ,महाभारत, नाटक ,व्याकरण आदि ग्रंथ लिखे गए हैं। संस्कृत के बाद जो भाषा आती है वह है पाली। पाली भाषा 500 ईसा पूर्व से पहली शताब्दी तक रही और इस भाषा में बौद्ध ग्रंथों की रचना हुई। पाली के बाद प्राकृत भाषा का उद्भव हुआ।
भाषा नदी की धारा के समान चंचल होती है। यह रुकना नहीं जानती, यदि कोई भाषा को बलपूर्वक रोकना भी चाहे तो यह उसके बंधन को तोड़कर आगे निकल जाती है। यही भाषा की स्वाभाविक और प्रवृत्ति है, चाहे कोई भी भाषा क्यों ना हो। हम यही कहना चाहेंगे कि हिंदी भाषा सबसे अहम है, इसमें हमारा मान, शान और सम्मान है।
“वक्ताओं की ताकत भाषा
लेखक का अभिमान भाषा
भाषाओं के शीर्ष पर बैठी
मेरी प्यारी दुलारी हिंदी भाषा”

डॉ मीना कुमारी परिहार

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