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बरखा की बहार

बरखा की बहार

बरखा की आयी बहार,
बुदियाँ पड़ने लगी l
पुरवा की बहती बयार,
नदियाँ उमड़ने लगीं ll

पशु – पक्षी हुए खुशहाल,
बदरा घुमड़ने लगे l
फूल खिलते चमेली गुलाब,
बगिया महकने लगी ll

सभी नाचे तो आई बहार,
बिजुरिया तड़कने लगी l
झूला डारौ अमुआ की डार,
सखियां सभी झूलने लगी ll

आये अबकी न सजना हमार,
नींद अँखियों की उड़ने लगी l
प्रेम करतीं हैं उनसे अपार,
धार अँसुअन की बहने लगी ll
आज अमावस की अंधियारी रात,
प्रिया पिया रटने लगी l
मोर नाचे हैं आज बेशुमार,
कोयलिया कूकने लगी ll

झुण्ड दादुर के आये हजार,
टर्र – टर्र करने लगे l
हरी चादर में धरती हमार,
श्रृंगार प्रकृति करने लगी ll

डॉ. बिश्वम्भर दयाल अवस्थी , (शिक्षक एवं कवि)
271 मुरारी नगर, सिद्धेश्वर रोड, गली नं. 4 खुर्जा, बुलंदशहर (उत्तरप्रदेश ) 203131

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