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बरसात

बरसात

अनंत उमंग, अंनत उम्मीद, अंनत आशाएं और अनगिनत खुशियों की लेकर सौगात,
लेकर नील गगन से मदमस्त सुंगध महकती, चहकती और बहकती फिर आई बरसात ।
रिमझिम फुहार से हर हृदय हर्षित ,खिल उठे प्रेमी मन में मधुर मिलन के अगणित ज़ज्बात ,
वन,बाग़, तड़ाग, उपवन, उजड़े दयार में आई बहार, घायल दिल के भी बदल गये ख्यालात,
डाल -डाल बुलबुल चहकती, तोता मैना इश्क लड़ाते तरूणाई कर रही मिठी रस भरी बात ,
पशु ,पक्षी ,मृग ,मयूर सब आह्लादित, कुसुम दल आपस मे करते आलिंगन और मुलाकात ,
लेकर नील गगन से मदमस्त सुंगध महकती, चहकती और बहकती फिर आई बरसात।
सृष्टि ने किया गज़ब सोलह श्रृंगार, प्रकृति में गुंजित समुधर संगीत सुबह-शाम दिन -रात,
इतराती, इठलाती, बलखाती बहने लगी जलधाराएं, छत मुंडेर पर बन गये कई जल प्रपात,
अब तक रूखें सूखे ताल तलैया तालाब सरोवर आनंदित , रिमझिम बारिश की बूंदो से करते बात,
जरा थम कर कहीं डुबने लगे है गांव, कहीं बाढ़ का बढ़ रहा कहर, कहीं जनजीवन पर तुषारापात ,
लेकर नील गगन से मदमस्त सुंगध महकती चहकती और बहकती फिर आई बरसात।
कड़कती, गरजती,चमकती बिजली से तन मन घबराता, कभी कहीं हो सकता हैं बज्रपात,
दूर गगन में काले भूरे कजरारे बादल हरदम मंडराते,रह रह कर बसुधा पर करते स्नेहिल आघात,
मौसम हुआ मतवाला, मंजर बावला, देख हसीन नज़ारा दिन हुआ रंगीन और हुई सुहानी रात,
बालवृंद जलक्रीड़ा करते, बहते नाली-नाले में तैराते काग़ज़ की नांव,मचा रहे बारिश संग उत्पात ,
लेकर नील गगन से मदमस्त सुंगध महकती चहकती और बहकती फिर आई बरसात,
प्रफुल्लित मेंढ़क टर्राते लेकर वहीं पुरानी राग,भूख मिटाने को बगुला अपनी धुन में रहा लगाए घात,
सारा भूमंडल हो जाता अनुकम्पित,जब-जब बादल आपस में करते जमकर संघर्ष और संघात ,
अंकुरित हुए गड़े पड़े मुरझाए फ़ल-फ़ूल, हरित हुआ धरती का परिधान, प्रमुदित सब परिजात,
हंसने लगे खेत खलिहान सिवान किसान, बढ़ने लगी आपसदारी भूल गए सब जात-पात,
लेकर नील गगन से मदमस्त सुंगध, महकती चहकती और बहकती फिर आई बरसात।

मनोज कुमार सिंह
लेखक/साहित्यकार/स्तम्भकार

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