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मील का पत्थर हूं मैं

मील का पत्थर हूं मैं

मील का पत्थर हूँ मैं मील का पत्थर हूँ
भटके हुए राही को राह दिखाता हूँ
थके हारे का उत्साह बढ़ाता हूँ
निराश की आस हूँ हार की जीत हूँ
यद्पि मैं पाषण हूँ फिर भी जीवंत हूँ
भगवान भुवन भास्कर की भांति जिनका गति चक्र कभी थमता नहीं हैं
मैं भी सदा गतिमान रहता हूँ
शीत का हिमपात बरसा की बरसात
ग्रिष्म का ताप सब कुछ सहता रहता हूँ फिर भी अडिग स्तभित खड़ा रहता हूँ
अपनी मूक वाणी से सबको सन्देश देता हूँ
सबको प्रेरित करता हूँ
पथ प्रशस्त्र करता हूं
उत्साह वर्धन करता हूँ कहता हूँ –
पथिक मेरे भाई रुकना मत थकना मत
चलते जाना पग पग आगे बढ़ते जाना
गंतव्य पथ पर मंजिल है प्रतीक्षारत
अधिक नहीं हैं लक्ष्य की दूरी
रह ना जाये आस अधूरी
मंजिल तक जाने की गंतव्य तक पहुंचने की
चाहे मग में शूल बिछे हों
चाहे फूलों से हो सुसज्जित
इन अवरोधों से होना मत विचलित
संकल्प सदा मन में दोहराना
मंजिल को निश्चय है पाना
कुछ पल विश्राम करके
लक्ष्य को ध्यान में धरके
बढ़ते जाना चलते जाना
मेरी प्रेरक सदा है शुभकामना
चलते जाना चलते जाना
प्रगति पथ पर पग पग बढ़ते रहना
चलते जाना चलते जाना

सुभद्रा द्विवेदी, लखनऊ

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