सामाजिक चेतना
सामाजिक चेतना
अंध-भक्त बिल्कुल बेकार, रामरहीम या हरि साकार। धर्म की नहीं इन्हें दरकार, चला रहे अपना कारोबार।।
डर,भ्रम से औ चमत्कार,
सच्चाई का ना आधार। सबको नशा लगा है यार,
दिखते आस्था में बीमार।।
रोकें धर्म का गलत प्रचार,
आस्था से न हो कोई खिलबाड़।
डोंगी बाबाओं की भरमार,
फैला रहे है गंदा कारोबार।।
आडंबरों का करो तिरस्कार,
शिक्षा ही है केवल हथियार। मठ-आश्रमों से दूरी रख यार, कानून बनाये अब सरकार ।।
सब पैसों का है कारोबार,
नेताओ से इनका सरोकार।इनके चंदे से चले सरकार।राजनीति मे रखें पकड़ अपार,
हाथरस का कौन है जिम्मेदार?
मरती भोली जनता बारंबार।।
लाचार है क्यो अबभी सरकार,
तय मानक मे हों रैली आकार।।
कर्मों का लेखा रखलो यार,
कर्म प्रधान है यह संसार।आदत में रख शील विचार
इसी से मिलता सुख औ प्यार।।
मां-बाप ईश्वर साकार,
सेवा उनकी करें अपार।
एक ब्रह्म है जो निराकार,
करलें हमसबआज विचार।।
भगवानदास शर्मा “प्रशांत”
शिक्षक सह साहित्यकार इटावा उत्तर प्रदेश