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भोली-भाली माताएं

भोली-भाली माताएं

फिर हाथरस लहू – लुहान हुआ इन बाबाओ के झंडे में,
भोली-भाली माताएं फिर भेंट चढ़ गई भीड़ में।।

इतने साल बीते आजादी के फिर भी देश नहीं आजाद हुआ,
कितना आसान रह गया है अभी तक जनता को भरमाने में।।

कहीं नेताओं ने भरमाया इन भोली-भाली माताओं को,
बच्चों को छोड़ घर पर धूप में आई थी हक मांगने को।।

वही बेवशी, वही सैलाव आन पड़ी है उनकी आंखों में,
जान हो गई है अब सस्ती उन सबके बहलावे में।।

जनसंख्या विस्फोटक हो गई अनपढ़ता के चक्कर में,
मांग रहे सब नौकरिया क्या लॉटरी लगेंगे रोजी में ?

कब तक मौन रहोगे बाबू अब सब का हिसाब करो,
भटक गए हैं जो भी राह से उनकी राह तुम मोड़ दो।।

ढूँढने चले राम को जो इन बाबाओं के अंदर में,
नहीं पता उन्हें कि राम बैठे हैं उनके मन मंदिर में।।

ध्यान – साधना अब नहीं रह गई है पूजन में,
सब की जड़ है निरक्षरता कब आएगी सबकी समझ में।।

पूनम सिंह
गाजियाबाद उत्तर प्रदेश।

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