‘’देवनागरी हिंदी”
‘’देवनागरी हिंदी”
देश का गौरव गान है जो
भारतीयता की पहचान है जो,
मांँ की लोरी सी हिंदी
प्यार भरी थपकी सी हिंदी।
बच्चा बोले जो प्रथमाक्षर
मीठा सा शब्द हिंदी में ‘मांँ’
हिंदी जो ,सत्तर प्रतिशत गांँवों की,अमराइयों की महक सी,
खिला जाती है घर -अंगना,
लोकगीतों का गुँजन,
भारत की धड़कन है हिंदी।
जनमानस का दर्पण,
साहित्य की सुगंध है ,
हमारी रचनात्मकता,
,रस -राग से परिपूर्ण,
भारत मांँ के भाल का,
रोली चंदन है।
क्यों रहे अपने ही घर में उपेक्षित,
क्यों बने हम ऐसे शिक्षित
मान न करें स्वयं की भाषा, संस्कृति पर ,
दूसरों से चाहे उसका सम्मान मगर!
हिंदी है हमारी अस्मिता, हमारी बुनियाद
क्यों कर रही अपने घर में फरियाद!
शुद्ध लिखें,पढ़ें, बोले हम
हिंदी को दे यथोचित मान
विश्व का हर छठा व्यक्ति
हिंदी समझता और जानता
यह है हिंदी की व्यापकता,
डिजिटल वर्ल्ड में छाई है हिंदी
सबसे अधिक हिंदी साहित्य पढ़ा जाता।
कितनी सुंदर लिखावट
है इसकी देवनागरी
क्यों अपनाते हैं हम रोमनागरी!
हिंदी जोड़े देश-विदेश
जहां हिंदी, वहीं हिंदुस्तान
अंग्रेजों ने कहा जिसे
‘बेस्ट फोनेटिक लैंग्वेज’
जिसका उच्चारण और लेखन है समान
भ्रम का जिसमें नहीं कोई स्थान।
झूलों की प्रीत ,सप्त स्वरों का गीत
क्या वासी , क्या प्रवासी
हिंदी हम सबका अभिमान
स्नेह की यह डोर अप्रतिम
समृद्धि, साहित्य का गुणगान ।
गूंँजी जो बन स्वतंत्रता संग्राम में
एकजुटता की धमक
उसके लिए शर्म क्यों,
हो आंँखों में गर्व की चमक।
बने न्याय , शिक्षा,रोजगार की भाषा
समन्वित विकास की गढ़े नई परिभाषा।
बने हम अधुनातन पर
अपनी जड़ें ना भूलें हमवतन
न रहे राष्ट्र अब और गूंगा
हिंदी को मिले स्थान सबसे ऊंचा
जन जन की अभिलाषा
हिंदी बने अब राष्ट्रभाषा।
अनुपमा ‘अनुश्री ‘