समझौता (लेख)
समझौता (लेख)
मंजू की लेखनी आज ऐसा कटु सत्य आप सभी के समक्ष रखना चाहती है जो हर समाज में नजर आता है |
विचार कीजिएगा ……..
आप सभी ने समझौता (Compromise) शब्द तो सुना होगा और कभी न कभी जिंदगी में समझौता किया भी होगा | फिर भी जब शादी के लिए लोग जीवन साथी की तलाश में निकलते है तब इस शब्द को घर में छोड़कर क्यों आते है | बहुत से लोगों को मैंने कहते हुए सुना है, हमें शादी के मामले में समझौता जरा भी पसन्द नहीं और कई लोग इसी वजह से अच्छे-अच्छे रिश्ते ठुकराते नजर आते है | फिर एक समय ऐसा आता है कि मजबूरी में समझौता करना पड़ जाता है, क्योंकि शादी की उम्र निकल चुकी होती है |
यह बात कहाँ तक सही है??
सभी से मंजू अपनी लेखनी के माध्यम से पूछना चाहती है !!!!!
कभी न कभी, किसी न किसी को समझौता करते हुए ही जिंदगी को सफल बनाना पड़ता है, कभी अपने रिश्तों को बचाने के लिए तो कभी अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए |
मेरा सभी से यही कहना है कि इस जीवन में कोई भी पूरी तरह परफेक्ट नही है, जीवन में हर किसी को एक-दूसरे के अनुसार ढलकर ही आपस में परफेक्ट बनना पड़ता है और अपने जीवन को सार्थक बनाना पड़ता है |
“ए जीवन के मुसाफिर करता चल समझौता यहाँ |
कब कौन है किसके काबिल |
जो हो तुझे हँसते-मुस्कुराते जिंदगी जीना |
तो इस समझौते का दामन थामकर चलते चल यहाँ |
किस्मत वाला वह नहीं जिसे है सब हासिल |
तकदीर उसकी है बुलन्द |
जिसने सीखा दूसरों की खातिर खुद को बदलना यहाँ || ”
मंजू अशोक राजाभोज
भंडारा (महाराष्ट्र)