गीत
गीत
युगों युगों सारी दुनियाँ जिसको गाये
गीत प्रेम के मैं ऐसे लिख जाऊँगा
साँझ ढले तुम देखोगे आकाश में उन तारों के बीच कहीं दिख जाऊँगा
मैं सूरज का वंशज हूँ किरणें बिखराता रहता हूँ
सबके मन की सुनता हूँ और अपनें मन की सुनाता हूँ
प्यार के दो मीठे बोलो पर बिना मोल बिक जाऊँगा
साँझ ढले तुम देखोगे आकाश में उन तारों के बीच कहीं दिख जाऊँगा
मैं उसका अनुयाई हूँ जो तूफानों से टकराये
ऊंचे ऊंचे पर्वत उसका रस्ता रोक नहीं पाऐ
मैं भी अपना सीना तानें वहीं कहीं डट जाऊँगा
साँझ ढले तुम देखोगे आकाश में उन तारों के बीच कहीं दिख जाऊँगा
नौनिहालों तुम आओ तुमको तो आगे जानां है
तारों से आगे तुमको इक सुंदर जहाँ बनाना है
मैं क्यूँ रोड़ा बनूँ तुम्हारा रस्ते से हट जाऊँगा
साँझ ढले तुम देखोगे आकाश में उन तारों के बीच कहीं दिख जाऊँगा
शीतलता का नाम चंद्रमां ताप को सूरज कहते हैं
सुख दुःख धूप छाँव की तरहा हरदम चलते रहते हैं
चलता हूँ तो जिंदा हूँ मैं रुक गया तो मैं मिट जाऊँगा
साँझ ढले तुम देखोगे आकाश में उन तारों के बीच कहीं दिख जाऊँगा
सच की राह पे चलनें वाले हरदम चलते रहते हैं
चाहे जैसी शीत लहर हो हरदम जलते रहते हैं
मैं इक नया सितारा बनकर अंबर पर झुक जाऊँगा
युगों युगों सारी दुनियाँ जिसको गाये
गीत प्रेम के ऐसे मैं लिख जाऊँगा
साँझ ढले तुम देखोगे आकाश में उन तारों के बीच कहीं दिख जाऊँगा
डॉ रमेश कटारिया पारस
30,गंगा विहार महल गाँव ग्वालियर म .प्र .474002
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