“सब अपने कार्य क्षेत्र में श्रेष्ठ “
“सब अपने कार्य क्षेत्र में श्रेष्ठ “
धर्मपुर गांव में दीना नाम का एक किसान रहता था। वह कृषि के कामकाज में अभ्यस्त तो था ही साथ – साथ पेड़ – पौधे लगाने का भी शौकीन था। वह कहता था – वह गांव ही क्या जहां हरियाली ना हो , पक्षियों का कलरव ना हो, पशुओं का चहल-पहल ना हो। वह सभी जीव-जंतुओं का भाषा विज्ञानी भी था। वह कोई काम बड़े लगन से करता। इस बार वह पौधों का रोपण कर रहा था । जिसमें पीपल और नीम के पौधे थे। वह सोचा पीपल से हमेशा शुद्ध हवा मिलेगा और नीम तो औषधियों का खज़ाना हैं। उसने दस मीटर की दूरी पर दोनों पौधों को लगा दिया। जब वह पौधे से पेड़ बने तो अपने आकार और क्षमता के अनुसार बढ़ सके। धीरे-धीरे दोनों पौधे पेड़ बन गए। किसान जब खेतों से थक हार के आता तो पीपल के नीचे खाट पर आराम करता। सुबह खेतों में जाने से पहले नीम का दातून करता । जिससे दांत मजबूत रहे। कभी – कभी वह नीम के नरम मुलायम पत्तों को खाया करता था। जिससे शरीर के सभी जहरीली पदार्थ बाहर निकल जाए और वह हमेशा स्वस्थ रहें। इधर पीपल के पेड़ का विस्तार दिनों – दिन बढ़ता ही जा रहा था। नीम का पेड़ उसके आगे बौना जान पड़ता था।
अब पीपल के पेड़ ने नीम को नीचा दिखाना शुरू कर दिया।
उस पर हंसता और कहता-‘ कड़वा है तू ‘। मैं तो वृक्षों का राजा हूं। मैं ज्ञान और शांति का प्रतीक हूं और आदिकाल से पूजा जाता हूं। मेरी हवा लोगों को शीतलता प्रदान करती है। परमार्थ ही मेरा जीवन है। तुझसे भी मेरा कोई लेना-देना नहीं है कहीं ना कहीं तेरी शाखाएं मेरे गति में अवरोध डाल रही है , इसलिए तू मेरे मार्ग में अवरोध मत उत्पन्न कर । नीम ने भी अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की – ‘तू! वृक्षों का राजा है तो मैं भी औषधियों का खान हूं।’ मेरा ही महत्व क्या कम है तूझसे। माना कि तूझसे आकार में छोटा हूं – ‘ये मत समझ लेना की मैं गुणहीन हूं’। मेरे एंटीआंक्सीडेंट और बायो एक्टिव शरीर को विभिन्न बीमारियों और त्वचा संक्रमणों से बचाने में मदद करते हैं। जितने तुम प्राचीन हो उतना मैं भी तो इस बात का घमंड मत करना कि मैं ही बड़ा हूं। कुछ भी कह लें मैं तुझसे शक्तिशाली हूं तो हूं।
तू जिस परिवेश में रहता है उसको देख ले ,जो शक्तिशाली है जिसके पास पैसा है सब उसके आगे सर झुकाते हैं। तू इंसानी दुनिया में रहकर इतना भी नहीं सीख पाया। मैंने इन्हीं लोगों से सीखा है बड़े लोग किसी के आगे झुकते नहीं है जो राह का कांटा बने उसे कुचल देना चाहिए। तभी तो हमारी शक्ति का अंदाजा लगेगा और कोई हमारा सामना करने की जुर्रत नहीं करेगा। अब तूझे भी मैं ऐसे ही कूचल दूंगा।
जब कभी तेज आंधी या बरसात होती। पीपल की कठोर शाखाएं नीम के शाखाओं को क्षत – विक्षत कर देता।पीपल के इस अमानवीय व्यवहार से नीम धीरे-धीरे कुंठाग्रस्त हो गया। उसकी सारी पत्तियां पीली पड़ गयी और वह दिनों-दिन कमजोर होता जा रहा था।
दीना जब तड़के सुबह दातुन तोड़ने गया तो देखता है कि सारी पत्तियां पीली हो गयी है। नीम के जड़ में पानी देने लगता है और सोचता है पानी बिना शायद सुख रहा है। कई दिन हो गया नीम के पेड़ में कोई सुधार नहीं हुआ।
खेतों से आकर वह खाट पर पीपल के पेड़ के नीचे लेटा था। तभी उसके कानों में आवाज आने लगी। पीपल और नीम द्वन्द्व चल रहा था। पीपल बात – बात में नीम की औकात देखता और कहता – ‘तू स्वभाव से ही कड़वा है।’
नीम ने भी अब अपनी हार मान ली थी और कहा इस तरह से जीवन जीने से अच्छा है अपने को खत्म कर लेना। बात भी सही है जिसके पास पैसा और शक्ति है उसका ही वर्चस्व है। हम जैसे लोगों का यहां क्या काम ? छोटे हैं तो अहंकार कर नहीं सकते। जो मिला है उसमें तो जी सकते ईश्वर की कृपा से।
‘ पर ऐसे जीने का क्या जहां हर बात में नीचा दिखाया जाए।’
दीना को सारी बात समझते देर ना लगी। दीना तेज-तेज से रहीम के दोहा गुनगुना लगा – ” बड़े बड़ाई ना करें, बड़े ना बोले बोल।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल।”
दीना उठकर खाट पर बैठ गया। पीपल और नीम से कहां यहां छोटा कौन और बड़ा कौन है। सभी अपने कार्य क्षेत्र में श्रेष्ठ है। अपनी-अपनी क्षमता और साहस से। इसमें बड़े- छोटे की बात कहां से आ गयी। पीपल से कहा – ‘पद से बड़ा प्रतिष्ठा होती है।’ ‘शक्ति से बड़ा सामर्थ्य होता है।’ ‘पैसों से बड़ा जीवन होता है।’ बड़े लोग तो छोटे का सहोदर होते हैं। खुद बड़ा बनते हैं और दूसरों को बड़ा बनाते है। रही बात समाज लोगों की तो वह उतना ही चलता है जितना जाने की सीमा है। कोई शक्ति और पैसों के बल पर ज्यादा दिन खड़ा नहीं रह सकता। एक दिन उसके पैर शिथिल होंगे ही और वह धरती पर धड़ाम से गिरेगा। चाह कर भी पैसे और शक्ति उसे उठा नहीं पायेंगे। अगर ईश्वर ने आपके अदम्य साहस को चुना है तो लोगों में प्यार और सम्मान बांटिए। सबको उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ाइए। तभी जाकर आपका जीवन सार्थक और सफल है।
पीपल को बहुत आत्मग्लानि हुई और कहा – “मैं कहां इंसानी मायाजाल में बस गया।” हम एक ही परिवेश के भाई -भाई है। मैंने भाईचारा तोड़ा कैसे। धरती मां के वीर सपूत है हम। “परमार्थ ही हमारा जीवन है।” मुझसे गलती कैसे हो गयी ? आंख में आंसू भरकर नीम से लिपटर अपने मन के मैल को धो डाला।
ज्योति सिंह (देवरिया) उत्तर प्रदेश