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पर्यावरण पच्चीसी – दोहावली

पर्यावरण पच्चीसी – दोहावली

मिट्टी पादप जल हवा, पर्यावरणी नाम।
जीवन रक्षक को सदा, करता अमित प्रणाम।~1

स्वच्छ हवा बहती रहे, जब तक चारों ओर।
मीत लगे पर्यावरण, नाचे मन का मोर।~2

देता है पर्यावरण, अपनी बाँहें खोल।
संरक्षण करते रहें, है यह अति अनमोल।~3

कुदरत है पर्यावरण, सदा कीजिये मान।
यही जगत की जिंदगी, यही अमित बलवान।~4

जल-थल सब निर्मल रहे, स्वच्छ बहे जब वायु।
बढ़ जायेगा सौ गुना, पर्यावरणी आयु।~5

जल जमीन जंगल जहाँ, मानुष है आबाद।
वरदानी पर्यावरण, फिर क्यों व्यर्थ विवाद।~6

साफ सफाई से मिले, कुदरत के सौगात।
प्रदुषित गर पर्यावरण, बिगड़ जाय हर बात।~7

जीव जन्तु जंगल सभी, धरती के संतान।
पर्यावरण करे भला, सुखी है इंसान।~8

बता रहा पर्यावरण, अपना खस्ता हाल।
जितनी जल्दी हो सके, मुझको लो संभाल।~9

सुख समृद्धि पर्यावरण, मिलता सब बेमोल।
पाँव कुल्हाड़ी क्यों पड़े, अपनी आँखें खोल।~10

वृक्ष हजार होंगे जहाँ, जमकर बरसे नीर।
पर्यावरण बचाइये, जीवन अमित अधीर।~11

खिली-खिली हो चाँदनी, सूर्यकिरण हो तेज।
पर्यावरण बचा रहे, दोनों हाथ सहेज।~12

दूषित जब पर्यावरण, बंजर होते खेत।
प्रकृति इशारा भी करे, मानव कहाँ सचेत।~13

देख रहा पर्यावरण, मानव की हर चाल,
भौतिकता की चाह में, जीवन हुआ मुहाल।~14

अपने सुख को पाटता, पग-पग धरती खोद।
सुखमय है पर्यावरण, निज माता की गोद।~15

सारे सुख की संपदा, है अपने ही हाथ।
पर्यावरण सहेजिये, मिलकर सबके साथ।~16

सबका है पर्यावरण, सोच समझ उपभोग।
मनमर्ज़ी मनभाव से, होय हजारों रोग।~17

स्वच्छ स्वस्थ पर्यावरण, जीवन का आधार।
वृक्ष नीर मिट्टी हवा, सबको दें आभार।~18

कुआँ ताल पोखर नदी, बिन पानी सब सून।
पर्यावरण सवाँरिये, देंगे खुशियाँ दून।~19

सुखदा है पर्यावरण, हम सबका मनमीत।
कुदरत के कण-कण बसा, स्नेहिल सुर संगीत।~20

अमित क्रोध यह कुदरती, जन जीवन जंजाल।
पर्यावरण असंतुलन, कभी बाढ़ भूचाल।~21

मानसून रीता रहे, धरा जलद बेमेल।
पर्यावरण बिगड़ गया, बिगड़ा सबका खेल।~22

पर्यावरण जहर भरा, मनुज किये अपराध।
खूब खजाने खोजता, निजहित रखता साध।~23

निर्मल जब पर्यावरण, प्रकृति लगे मधुमास।
कूड़ा कर्कट फेंक के, करें नहीं उपहास।~24

दाता है पर्यावरण , अगणित है उपकार।
सेवा करते लीजिये, जीवन भर उपहार।~25

डॉ. कन्हैया साहू ‘अमित’
शिक्षक~भाटापारा छत्तीसगढ़

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