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पर्यावरण का सिपाही (लघुकथा)

पर्यावरण का सिपाही (लघुकथा)

कमलल्ल्ल्ल्ल्………..
गुस्से से आंख लाल करते हुए, एवं लगभग खूब जोर चिल्लाते और गरजते हुए,___राम दयाल अपने पोते पर उबल पडे…….
क्या हुआ दादा जी…?
दादा जी के बच्चे. …
यह तुमने क्या कर डाला..?
क्या कर डाला हमने…? बताइये तो सही….
तुमने कुड़ेदान में जो डाले हो, जानते हो वह क्या है?
वह तो केवल कचरा था, सो मैंने उसे कुड़ेदान में डाल दिया.
बेवकूफ ! तुम जिसे कुड़ा समझकर फेक दिये हो, वह वास्तव में तुलसी जी का पौधा है,और बाकी चीजें फलों का बीज था.
तुलसी का पौधा पर्यावरण के लिए रामबाण है,उसको तुरत कुड़ेदान से निकालकर उसको गंगाजल से धोकर घर के आंगन में एक गमले में लगा दो, और जो फलों का बीज है उसको सामने वाले मैदान में लगा दो जिससे कुछ वर्षों के बाद वह बीज पेड़ बनकर तैयार हो जायेगा पर्यावरण की सुरक्षा करेगा और खाने के लिए फल भी मिलेगा.
आजकल रोज अखबार में पढ़ने को मिल रहा है कि हीट वेव बहुत ज्यादा होने लगा है, समतल में भी ओर उपर पहाडों पर भी.
और जगह की बात छोडो, यह अपना शहर पेड़ों का शहर कहलाता था,और अब यह कंक्रीटों का शहर कहलाने लगा. पेड़ कटते गये, खेत छोटे होते गये, पैदावर कम होती गई, मंहगाई बढ़ती गई, असंतोष बढ़ता गया. पर्यावरण की समस्या बढ़ती गई. मौसम की मार से लोग बेहाल होने लगे. ओजोन की परत दिन_ब_दिन घिसता चला जा रहा है और इसका दुष्परिणाम है__भयाननक गर्मी और मौसम की भयानक मार.
हम सभी अपने स्वार्थ में प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने लगे और जब प्रकृति अपना रौद्र रुप दिखाने लगी तो हम लोग भगवान को कोसने लगे.
अगर हम सभी अपने__अपने__स्तर से पर्यावरण की सुरक्षा का ख्याल करने और रखने लगे तो हम पर्यावरण की सुरक्षा को अंजाम दे पायेंगे.
हमारे धार्मिक पुस्तकों में वर्णित है कि हम सभी पेड़ लगायें __एक पेड़ दस बेटे के समान होता है,अगर पेड़ ज्यादा होगें तो पर्यावरण की समस्या से कुछ हद तक निजात पाया जा सकता है, समझे,हमने इसीलिए तुम पर गुस्सा किये थे।
दादा जी मुझको अपनी गलती का अहसास हो गया। अब फिर हमसे ऐसी गलती नहीं होगी , और दादा जी आपकी सीख से सीख लेकर_____ मैं आज से ही पर्यावरण का सिपाही बनकर पूरे देश में पर्यावरण सुरक्षा की अलख। जगाऊंगा….
बस मुझे आप अपना आशीर्वाद दीजिए……
वाह….. बेटे… वाह…. वाह…. पोते….वाह

ओमप्रकाश केसरी पवननन्दन
(लघु कथाकार)
बक्सर बिहार

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