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लड़कियों की अभिव्यक्ति : हम पंछी उन्मुक्त गगन के___ डॉ आर सी यादव

 

“मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राजदुलारा” की सोच रखने वाले हमारे पुरुष प्रधान समाज में जितनी तवज्जो लड़कों को दी जाती है उसका थोड़ा सा भी अंश अगर लड़कियों को दी जाए तो वे एक नहीं दो-दो परिवार को रोशन करेंगी। टोक्यो ओलंपिक में मीराबाई चानू, पी‌ वी सिंधु और लवलीना ने यह साबित कर दिया कि लड़कियां भी माता-पिता का नाम रोशन कर सकती हैं । *”म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के”* हरियाणा के गांवों से निकली यह कहावत आज पूरे देश की कहावत बन गई है क्योंकि हमारी बेटियां वास्तव में बेटों से कम नहीं हैं । घर की चहारदीवारी से निकलकर आज की बेटियां उन्मुक्त गगन में स्वतंत्र पक्षी की तरह उड़ रही हैं । हर क्षेत्र में कामयाबी के शिखर पर पहुंचने वाली आज की बेटियों ने पुरुष प्रधान समाज को यह सोचने पर बाध्य कर दिया है कि बेटा और बेटी में भेद रखना कहां तक उचित है ? क्या बेटे ही कुल का दीपक हैं ? क्या बेटे ही कुल का नाम रोशन करेंगे ? बेटियों ने अपनी कामयाबी से पुरुष प्रधान समाज पर एक प्रश्नचिन्ह लगा दिया है कि इस समाज में बेटे-बेटियों में फर्क करने का मापदंड किसने बनाया ? हमारा भारतीय समाज पुरुष प्रधान है , यहां बेटियों को उचित सम्मान और स्थान नहीं दिया जाता । बेटियों की स्थिति तो ऐसी है कि उन्हें घर में भी तिरस्कृत किया जाता है, समाज तो दूर की बात है ।
हमारे भारतीय परिवारों को सदैव बेटे की कामना होती है , उन्हें एक बेटे की दरकार होती है जो कुल का दीपक हो , जो वंश को आगे बढ़ाने में सक्षम हो और घर-परिवार का दायित्व संभालने के लिए एक योग्य हो । वैवाहिक बंधन में बंधते ही हर परिवार में यह धारणा बलवती हो जाती है । बेटे की लालसा में लोग मंदिर-मस्जिद और गुरुद्वारे तक हो आते हैं । हजारों मन्नतें सिर्फ बेटा के जन्म को लेकर मांगी जाती है जबकि बेटियों के लिए सिर्फ रही की बेटियां हों ही नहीं । हमारे समाज का विचार कितने निम्न कोटि का है । आज हम एक नए युग में जी रहे हैं और नए भारत की बात कर रहे हैं । हमारा देश विज्ञान से लेकर अंतरिक्ष तक और स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा तक हर क्षेत्र में तरक्की कर रहा है। एक ऐसे भारत का निर्माण हो रहा है जिसमें हमारा युवा वर्ग भविष्य के भारत को बना रहे हैं। यह सुनकर बहुत ही अच्छा लगता है कि हमारा देश बदल रहा है और विश्व मंच पर अपनी कामयाबी की गाथा का मंचन कर रहा है लेकिन हमारी यह खुशी उस समय काफूर हो जाती है जब हम सुनते हैं कि फलां के घर बेटी हुई है । यही नहीं जन्म लेने वाली बेटी के घर मातम सा छा जाता है , माता-पिता और परिवार ऐसे चिंतित प्रतीत होते हैं जैसे कि उनका सब-कुछ लुट गया है । जरा विचार कीजिए कि बेटियों के प्रति हमारी यह सोच कहां तक उचित है ? जिस बेटी के जन्म के समय माता-पिता और परिवार खुश न होते हों उस घर में बेटियां कितनी सुरक्षित होंगी, यह विचारणीय प्रश्न है ।
हमारा समाज लाख दंभ भरता हो कि बेटी और बेटों में कोई फर्क नहीं होता है। बेटियां बेटों से कम नहीं हैं, लेकिन यह सामाजिक रुढ़िवादी विचारधारा आज भी भारतीय समाज में रची-बसी है। हमारे समाज में बेटियां कदापि सुरक्षित नहीं है । बेटियों पर तो जन्म से पूर्व ही उनके अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो जाता है । ऐसे-तैसे जीवन जीने वाली बेटियां घर-परिवार की चक्की में पिसती हैं , दहेज के दावानल में झुलसती हैं और अपनी इज्जत और सम्मान के लिए समाज में घसीटी जाती हैं ।
यह कहना बहुत आसान है कि हम बेटे-बेटियों में फर्क नहीं करते हैं लेकिन सामाजिक बुराई से मुख भी नहीं मोड़ सकते । बेटियों के प्रति बनी अवधारणा को बदलने में ही समाज की गरिमा है । टोक्यो ओलंपिक में भारतीय बेटियों के शानदार प्रदर्शन ने पूरे देश को गौरवान्वित किया है । भारतीय महिला हॉकी टीम ने ओलंपिक के क्वार्टरफाइनल में पहुंच कर ओलंपिक खेलों के अब तक के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात किया है । ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम की खिलाड़ियों की पारिवारिक और आर्थिक स्थिति भी इतनी अच्छी नहीं है । गरीब परिवार से निकलकर और आर्थिक तंगी से जूझते हुए हमारी बेटियों ने लाजवाब प्रदर्शन किया है।
यह हमारी बेटियों की अभिव्यक्ति का ही परिणाम है । पी.टी. ऊषा, कर्णम मालेश्वरी, साक्षी मलिक, सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल से लेकर एम सी मैरीकॉम,पी वी सिंधु , मीराबाई चानू, लवलीना, दीपिका कुमारी जैसी बेटियों ने खेल में दमदार प्रदर्शन कर माता-पिता, परिवार और देश का नाश‌ रोशन किया है , ये वे बेटियां हैं जिनका नाम भारतीय इतिहास में युगों-युगों तक लोगों की जुबान पर रहेगा। यह सब बेटियों के स्वच्छंद विचरण से ही संभव हो सका है । बेटियों को अगर उनकी प्रतिभा के अनुरूप माता-पिता और परिवार का साथ मिल जाए तो वह एक दिन ऐसा मुकाम हासिल कर सकती हैं जिनकी हम उम्मीद भी नहीं कर सकते ।
जिस तरह से विश्व समुदाय में भारत ने अपना एक गरिमामय स्थान बनाया है ठीक उसी तरह हमें भी अपनी बेटियों के लिए एक नया समाज बनाने की कोशिश करनी चाहिए । बेटियों को आजाद कर उन्हें प्रोत्साहित करने से उनके अंदर छिपी हुई प्रतिभा उभर कर सामने आएगी । खेल ही नहीं बल्कि बहुत से व्यापक क्षेत्र बेटियों की राह देख रहे हैं । शिक्षा , चिकित्सा और प्रशासनिक सेवाओं में भी बेटियों के लिए उचित स्थान है । आज की बेटियां बड़े-बड़े प्रतिष्ठानों और कारपोरेट जगत की एक हस्ती बन चुकी हैं । यह सब उनके माता-पिता के संघर्ष और त्याग का परिणाम है । हर माता-पिता को पूर्व व वर्तमान पीढ़ी के कामयाब बेटियों की‌ कहानियां अपनी-अपनी बेटियों को सुनाकर उन्हें तलाशना चाहिए जिससे उनकी आंखों में एक सपना बुने और वो बेटियां उन सपनों को पूरा करने के लिए परिश्रम करें । यदि हम निश्चित रूप से एक सशक्त समाज की स्थापना करना चाहते हैं तो हमें बेटे-बेटियों के अंतर को समाप्त कर समान रूप से उनकी कामयाबी के लिए नए रास्ते की तलाश करना चाहिए । हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी बेटियां भी हमारे कुल की चांदनी हैं जो हमारे जीवन को प्रकाशित कर हमारा नाम रोशन कर सकती हैं ।

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