गंगा माँ
गंगा माँ
गंगा माँ हम है बालक तेरे ।
पतित पातकी पामर पागल जो है भी जैसे भी है है बस तेरे ।
जननी ही शिशु को नहलाती ,शौच साफ कर सदा सजाती ।
धूल धूसरित या कीच सना हो , पावन कर माँ लाड़ लड़ाती ।।
पावन परम कर्म सब तेरे ।……………………………..१
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि दिन बुध,हम सब की लीन्ही थी तुम सुध ।
स्तुति करते सुर नर मुनि जन , साधक सिद्ध सुजान विबुध बुध ।।
धरु माथ पद पकंज तेरे ।…………………………………२
तुम पतितो को पावन करती ,शाप विमुक्त सगर सुत करती ।
ये पूत कुपूत भले हो जाये ,अहित किसी का माँ नही करती ।।
हम सब शरन पड़े है तेरे ।……………………………………३
केशव के चरनों से निकसी ,पुनि विधि ब्रह्म कमंडल विकसी ।
भागीरथ के भव्य भाग से, हो शिव शीश सुशोभित निकसी ।।
सबै सुलभ शुभ दर्शन तेरे ।………………………………….४
दरस परस अरु मंजन पाना, हरहि पाप कह वेद पुराना ।
ममतामयी है माँ तू मेरी , वात्सल्य भाव वत्स ने जाना ।।
माँ कब दर्शन होगें तेरे ।…………………………………….५
जह्नु ऋषि का मान बढ़ाया ,जाह्नुवी सुता भाव भरवाया ।
मक्खन हृदय बना आपका ,भारत सस्य जहाँ लहराया ।।
दर्शन सदा करत रहे तेरे ।………………………………………६
माँ मेरा तुम भाग्य जगा दो , प्रभु चरनों से हमें मिला दो ।
गोविन्दजी के गुण नित गांऊ, ऐसी सुन्दर बुद्धि बना दो ।।
नावै शीश सदा तट तेरे ।…………………………………….७
मकर वाहिनी मातु भवानी , तेरी महिमा अकथ कहानी ।
वरनै को किसमें है शक्ति , केवल सफल करन को बानी ।।
चरन शरन में हूँ माँ तेरे ।……………………………ं……..८
डा. राजेश तिवारी ‘मक्खन’
झांसी उ प्र