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देश के लोकप्रिय साहित्यकार श्री पी.यादव ‘ओज’ की नई पुस्तक ‘नयंश’ का शानदार आगाज

 

साहित्य की सेवा में निरंतर अग्रसर एवं समाज को नई राह प्रदान करने का प्रण लेते हुए और अपनी पुस्तक से जन जागृति का संदेश देने का संकल्प की दिशा और हिंदी साहित्य लेखन यात्रा में श्री पी.यादव ‘ओज’ का एक नया अध्याय आज फिर जुड़ गया। हाल ही में साहित्यकार श्री पी.यादव ‘ओज’ अपनी पुस्तक ‘अंतर्नाद’ की भारी सफलता से साहित्य के गलियारे में खासी चर्चा के पात्र बने थे। ‘नयंश’ इनकी चौथी पुस्तक और तीसरी काव्य संग्रह है। बीते कुछ माह पूर्व सहभागी साहित्यकार के रूप में पुस्तक ‘टोही टोकरी’ को भारत सरकार की मान्यता और संरक्षण मिली थी। जिसके कारण वह देश में बहुत अधिक बधाई के पात्र बने थे। इनकी साहित्य के प्रति असीम भक्ति को देखकर ही ‘प्रेरणा प्रचारिणी साहित्य संस्थान’ ने भी ‘साहित्य भक्त सम्मान-2023’ से सम्मानित किया।
‘नयंश’काव्य संग्रह इनकी बेहतरीन लेखनी का एक शानदार शिल्प है।इस काव्य संग्रह के अंतर्गत इन्होंने जीवन के संपूर्ण आदर्शों को व्यावहारिक तौर पर प्रस्तुत किया है।
यह पुस्तक इंकलाब प्रकाशन,मुंबई के द्वारा प्रकाशित हुई है।’नयंश’पुस्तक की भूमिका व समीक्षा देश के प्रख्यात साहित्य मनीषी,विद्वान एवं ख्यातिलब्ध उपन्यासकार श्री प्रमोद कुमार जी (गंवरू प्रमोद जी) ने लिखी है।
‘नयंश’पुस्तक की भूमिका व समीक्षा का अंश यहां प्रस्तुत है।
इस काव्य संग्रह पुस्तक का नाम साहित्यकार पी यादव ‘ओज’ ने ‘नयंश’ क्यों रखा? इस पर तो वे ही अपना विस्तृत विचार एवं मत रख सकते हैं. यहां ‘अय’ है अर्थात् ईश्वर की श्रेष्ठ कृति की झलक है या ईश्वरीय सर्वोच्च सत्ता की झलक है. तभी हम इस शब्द को ‘अयादि’ संधि के अंतर्गत लेंगे और इसका संधि विच्छेद करेंगे. इसका संधि-विच्छेद होगा- ‘ने + अंश = नयंश’. इसका सीधा-सीधा अर्थ होगा ‘ने’ अर्थात् ‘आगे ले जाना वाला’ और ‘अंश’ अर्थात् ‘भाग’. मतलब ‘मानव-जाति को आगे ले जाने वाला अंश/भाग’ अथवा ‘मानव-जाति को आगे बढ़ाने वाला तत्त्व’.
उक्त नामकरण ही इसकी सार्थकता को सिद्ध करता है. यह कैसे? आइये, हम आगे कवि के मनोरम काव्यों का उद्धरण लेते हुए देखते हैं-
“उड़ाओ गुलाल और तुम रंगों के जश्न मनाओ,
वो फतह का जश्न देखो मनाने को आगे बढ़े हैं.
भर दो फिजाओं में तुम बेइंतहा प्रेम के रस-रंग,
वो मां की चरणों में बूंद-बूंद लहू चढ़ाने को डटे हैं.”
यहां कवि ने विपरीत वातावरण में भी प्रेम पूर्वक आगे बढ़ने को उत्साहित करता है. है न यह ‘नयंश’ शब्द की सार्थकता.
‘नयंश’ शब्द में विज्ञान है, महाप्राण है, और प्रत्यभिज्ञान भी है. विज्ञान इसलिए कि यह काव्य-संग्रह साहित्यिक विज्ञान का आदर्श प्रस्तुत करता है. यह सामाजिक विज्ञान के धरातल से भी असंगत नहीं है, और यह व्यर्थ के आकर्षक लहजों की पर्याप्तता-पंगत नहीं है. सात भागों के काव्यों के माध्यम से इसमें सच के तथ्य उद्घाटित किए गए हैं. उनमें गच के पथ्य भी उद्घाटित किए गए हैं. इसके उद्घाटनकर्ता कवि अपने जीवन के संघर्षों से जूझते हुए एक्शन में आया है. क्योंकि उन्हें अपने संघर्षों का अवलोकन करते हुए ईश्वरीय सत्ता का मार्ग सुहाया है. कवि के काव्य में उद्धरित शब्दों में न तो कोई आंतरिक जटिलता है, और न ही कोई कांतरिक कुटिलता है.
कवि ने संघर्षों के विज्ञान-भट्टी पर तपकर निखरने हेतु प्रेरणादायक शब्दों में कितना सुंदर लिखा है, आप भी देखें

“परचम वही लहराते हैं,
जो निज साहस से गोता लगाते हैं.
जीत उन्हीं की होती है,
जो तूफां बीच चट्टान बन जाते हैं.”
(34-मृत्युंजय, भाग – 7)
इतना नहीं कवि ने हिंदुस्तान की मिट्टी में सारे विज्ञान के रहस्य को समा दिया है. आप भी देखें-
“है चीख-चीख कर कह रही,
हर धड़कने आसमान की.
स्वर्ग बसा है जिस धरा पर,
वह मिट्टी है हिंदुस्तान की.
देवताओं के जहां चरण पड़े,
जहां ऋषियों ने धर्म-रक्षा की.
मानवता जहां मूलमंत्र रही है,
वो मिट्टी है हिंदुस्तान की.
वेदों ने जहां ज्ञान है फैलाया,
जहां संतों की सदवाणी गूंजी.
विज्ञान जहां अंकुरित हुआ,
वह मिट्टी है हिंदुस्तान की.”
आइये हम इस बात पर भी चर्चा कर लेते हैं कि इसमें ‘महाप्राण’ कैसे है? महाप्राण इसलिए है कि इसके शब्द-शब्द में प्राण-पुष्ट पद्धतिगत सिद्धांत है, और हर पंक्ति में मानव-जाति के पठन योग्य प्रगत-प्रांत है. कवि की भाषा इस काव्य-संग्रह में साइबरनेटिक्स की भांति चलती हैं, और इसकी गठन-आशा ब्लैक-बॉक्सेटिक्स की भांति सुफलती हैं. कवि का अनुभवजन्य अध्ययन की अवधारणा इसमें ‘हेलिक्सिक टोन’ को बढ़ाता है, और कवि की सर्वांगिक साधना इसमें ‘प्रॉक्सिक प्रोन’ को चढ़ाता है. काव्य के हर खंड में इनपुट-आउटपुट वाले प्रौद्योगिकीय विभक्ति है, और पांति-पांति में दिखती कवि की अकूट अनुरक्ति है. भारत माँ के प्रति कवि का महाप्राण जगजाहिर हुआ है. आइये, इसे आप भी सोद्धरण देखें-
“कर्ण-गुहा में गूंजा जैसे कोई सुकंपन,
पुलकित हो उठा हृदय का कण-कण.
धड़कन ली अधीर अनंत अनंत हिलोरे,
रोम-रोम तरंगित है हो उठी क्षण-क्षण.”
(21- कुछ शब्द ही तो थे)
इस काव्य-संग्रह में ‘प्रत्यभिज्ञान’ भी है जो हमें अपने जीवन में श्रम करते हुए जीने के तरीकों से साक्षात्कार कराता है. यह हमें मन के कोरों तक को झकझोर देता है, और हमारे कुंद कर्महीन गांठों को तोड़ देता है. आइये, आप भी जिंदगी जीने के तरीकों से प्रत्यभिज्ञान कराने वाले कुछ पंक्ति को देखें-
“श्रम है जीवन-सफलता की कुंजी,
है यह साधना-सिद्धि का अनुपम द्वार.
श्रमशील होकर ही मनु कर सकता,
दुर्लभ सौभाग्य पर अपना अधिकार.”
संक्षिप्त में कहूं तो इस काव्य-संग्रह के सातों भाग में कवि के अंत:करण की न केवल अभिव्यक्ति है, अपितु भारत मां की धरती को उर्वर बनाए रखने वाली शक्ति है.
अस्तु, किमधिकम्… कवि के मानस से उपजी यह ‘नयंश’ भारत-धरा को सदा उपजाऊ रखेगी और पाठकों का मनोबल बढ़ाएगी. इसी आशा के साथ, मैं इस पुस्तक को पाठकों को समर्पित कर रहा हूं.
जय हिंद…
समीक्षा की वैज्ञानिकता और साहित्यिक पक्ष को ध्यान में रखते हुए यह जरूर कहना होगा कि यह पुस्तक आने वाले समय में ‘मील का पत्थर’ साबित होगी।
आशा है यह पुस्तक पाठकों को बहुत अधिक पसंद आएगी और एक नई ऊर्जा का संचार करेंगी।

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