मातृ दिवस
( जब जब मैं संकट और तन्हाई में होता हूं, तब तब मां की गोद में सिर रखकर सोता हूं ।।जिस मां ने मेरी पूरी जिंदगी लिखी हो, उसे मां पर लिखने वाला में कौन होता हूं )
मातृ दिवस
अनपढ़ होकर भी जो दुनिया का ज्ञान सिखाती थी
और नहीं कोई उसके जैसा वह सिर्फ मां कहलाती थी सिर्फ मां कहलाती थी ।।
खुद सोती थी गीले में सूखे में हमें सुलाती थी
देख चपलता बालक की वो मंद मंद मुस्काती थी।।
गिरे जो बालक संकट में तो झट से हमें उठाती थी
एक निवाला हमको देकर खुद भूखी सो जाती थी ।।
पापा की बो डांट दिखाई मार से हमें बचाती थी
हमें छुपा कर पीछे खुद दुनिया से लड़ जाती थी ।।
जिनसे तुमको जीवन में मिली हुई पहचान थी
और जिसको घर से ठुकराया बस वही तो घर की शान थी ।।
वृद्ध आश्रम मुझको भेजेगा मां इस दुख से अनजान थी
सूखी खाकर टूट गई वो बच्चों पर कुर्बान थी
श्रृंगार करें, तैयार करें बो सबसे अधिक दुलार करें
सागर सी बो गहरी ममता निश्चल सच्चा प्यार करें।।
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हास्य व्यंग्यकार राजकुमार अहिरवार प्रेरणा
विदिशा मध्य प्रदेश